आपने मुझे देश की सबसे बड़ी पंचायत में
आशीर्वाद दे करके भेजा। आपने मुझे इतना भरपूर प्यार दिया, इतना भरपूर
प्यार दिया है कि जो आज मुझे कार्य करने की प्रेरणा भी देता है ऊर्जा भी
देता है। और इसके लिए मैं इस पवित्र धरती का आभारी हूं। यहां के
लाखों-लाखों भाइयों बहनों का आभारी हूं, भोले बाबा का आभारी हूं, मां गंगा
का आभारी हूं।
आज में सुबह बलिया में था और अभी काशी में
अनेक कार्यक्रम करता-करता आप सबके बीच पहुंचा हूं। हमारे देश में
दुर्भाग्य से राजनीति उस रूप में चलाई गई कि जिसमें हमेशा योजनाएं वही
बनीं जिस योजनाओं से वोट बैंक मजबूत बनती रहे। देश का नागरिक मजबूत बने या
ना बने, देश का गरीब मजूबत बने या न बने, हिन्दुस्तान के गांव, मोहल्ले,
शहर मजबूत बने या न बनें, हिन्दुस्तान मजबूत बने या न बने लेकिन वोट
बैंक मजबूत बनती रहनी चाहिए, यही कारोबार चला। अगर पहले निषाद भाइयों के
वोट चाहिए तो क्या चर्चा हुआ करती थी, डीजल का थोड़ा दाम कम करो, एक रुपया
कम करो जरा, निषाद लोग खुश हो जाएंगे तो वोट दे देंगे। कुछ ऐसी ही बातें
हमेशा चलती रहीं। लेकिन जब तक हम समस्याओं की जड़ में नहीं जाते, और जड़
से समस्या का समाधान करने का प्रयास नहीं करते हैं तो आप चुनाव लड़ते
जाएंगे, चुनाव जीतते जाएंगे लेकिन मेरा गरीब और गरीब बनता जाएगा और मुसीबत
झेलता जाएगा। और इसलिए हमने जो भी योजनाएं बनाईं वो योजनाएं गरीब को वो
ताकत देती हैं ताकि गरीब स्वयं गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए हिम्मत
रखें, गरीब खुद ही अपने गरीबाई को खत्म करें, करीब खुद ही गरीबी को
परास्त करके विजयी हो करे निकलें, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।
आपने देखा होगा, प्रधानमंत्री जन-धन
योजना, ये प्रधानमंत्री जन-धन योजना देश आजाद होने के बाद 70 साल होने आए
हैं लेकिन इस देश के 40 प्रतिशत लोग जिन्हें बैंक का दरवाजा देखने का
सौभाग्य नहीं मिला था, बैंक में खाता खोलने की बात तो छोड़ दीजिए उसने कभी
सोचा नहीं था कि वो भी कभी बैंक में जा सकता है। हमने बीड़ा उठाया, क्या
ये बैंक गरीबों के लिए होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए? गरीबों का बैंकों पर
हक होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए? अगर गरीब बैंक से पैसा लेना चाहता है
तो मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए? क्या गरीबों को अब भी साहूकारों के
यहां जा करके ऊंचे ब्याज से पैसे लेने के लिए मजबूर होना पड़े वो अच्छी
बात है क्या? और इसलिए भाइयो, बहनों हमने करीब 21 करोड़ से ज्यादा नागरिक
इनके प्रधानमंत्री जन-धन योजना के बैंक एकाउंट खुलवा दिए और बैंक एकाउंट
खुलने के समय हमने कहा था आप चिंता मत कीजिए आपके पास पैसे हैं कि नहीं
हैं। बैंक वाले हमें कहते रहे साहब दस रुपया तो लेने दीजिए ये स्टेशनरी का
खर्चा होता है, फार्म का खर्चा होता है, मुलाजिम का खर्चा होता है, ये
मुफ्त में करेंगे तो बहुत घाटा हो जाएगा। मैंने कहा जो होगा सो होगा, गरीब
के लिए बैंक होती है घाटा होगा तो गरीब के लिए मुझ मंजूर है।
मैंने गरीबों के लिए कहा कि जीरो बैंलेस
से बैंक एकाउंट खुलेगा, जीरो बैलेंस से। जीरो बैंलेस से बैंक एकाउंट खुलेगा
और धन्यवाद, धन्यवाद भइया, इसका प्यार इतना बढ़ गया। हमने कहा जीरो
बैंलेस होगा जीरो, एक नया पैसा नहीं होगा तो भी गरीब का बैंक का खाता
खुलेगा। लेकिन इस देश का गरीब, जेब तो खाली होगा लेकिन उसका दिल कभी खाली
नहीं होता है। जेब में पैसे नहीं होंगे लेकिन गरीब के मन की उदारता में कभी
कटौती नहीं आती है। मोदी ने तो कह दिया था कि गरीबों को एक रुपया देने की
जरूरत नहीं है खाता खुलवा दीजिए। लेकिन मेरे देश के गरीबों की अमीरी देखिए,
अमीरों की गरीबी तो बहुत देखी, कभी गरीबों की अमीरी भी तो देखा करिए। और
मैं आज सीना तान करके कह सकता हूं, सर उठा करके कह सकता हूं कि मेरे देश के
गरीब कुछ भी मुफ्त का नहीं चाहते हैं। जीरो बैलेंस से एकाउंट खुलना था
लेकिन मेरे देश के गरीबों ने 35 हजार करेाड़ रुपया बैंकों में जमा कराया,
35 हजार करोड़ रुपया।
जिस देश के गरीब ऐसी ऊंची भावना रखते हों, उन गरीबों के लिए जिंदगी खपाने का आनंद आएगा कि नहीं आएगा? उनके लिए काम करने का मजा आएगा कि नहीं आएगा? ऐसे गरीबों के लिए काम करें तो जीवन में संतोष मिलेगा कि नहीं मिलेगा? और इसलिए भाइयो, बहनों मुझे इतना आनंद इतना संतोष होता है, मेरे इन गरीब भाइयो, बहनों के लिए काम करता हूं, दिन-रात दौड़ने का मन करता रहता है। हमने प्रधानमंत्री जन-धन योजना में जो बैंक खाता खोलेगा लेकिन वो पड़ा रहने देना नहीं है, भले 5 रुपया है तो 5 रुपया जाना है, डालना है, निकालना है, डालना है, निकालना है। वो बैंक वाला मेहनत करेगा, करने दो। आप आदत डालो, बैंक में जाने की आदत डालो। बैंक वालों को भूलने मत दो। उनको भूलने मत दो। उनको याद रखना चाहिए कि देश गरीबों के लिए है, ये सरकार गरीबों के लिए है, ये बैंक भी गरीबों के लिए है। लेकिन अगर आप बैंक में जाना ही बंद कर दोगे तो वो तो भूल जाएगा। तो मेरी देश के सभी गरीबों से प्रार्थना है कि अपने जन-धन एकाउंट खोला है लेकिन महीने में एक दो बार बैंक में जाया करो। पांच, दस रुपया, पंद्रह रुपया रखते चलो कभी जरूरत पड़े तो निकालते चलो। बैंक में आप काम लेना सीखो। और अगर वो गया तो सरकार में गरीब अगर बैंक में खाता खोलता है तो उसका दो लाख रुपये का बीमा लिया है मेंने, दो लाख रुपये का बीमा। अगर उसके परिवार में कुछ हो गया तो दो लाख रुपया उसको तुरंत पहुंच जाएगा। ये व्यवस्था की है भाइयो। लेकिन ये तब होगा अगर हमारा गरीब बैंक में regular खाता चालू रखेगा। एक बार खोला, रखा, छोड़ दिया तो ये फायदा नहीं मिलगा। और इसलिए मैं आपका प्रतिनिधि हूं, सांसद के नाते आपने मुझे बिठाया है। मैं चाहता हूं मेरे बनारस में इसका सबसे ज्यादा फायदा लोग लें।
हमने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना लाए। ये मुद्रा योजना क्या है? हमारे देश में गरीब व्यक्ति उसको बेचारे को ज्यादा पैसे नहीं चाहिए। पांच सौ, हजार करोड़ रुपया नहीं चहिए उसको। उसको तो पांच हजार रुपया, दस हजार रुपया, पचास हजार रुपया, लाख रुपया, दो लाख रुपया। धोबी होगा, नाई होगा, प्रसाद बेचने वाला होगा, फूल बेचने वाला होगा, पूजा का सामान बेचने वाला होगा, गरीब आदमी, छोटा-छोटा काम करने वाला चाहे दूध बेचता हो, चाय बेचता हो, बिस्कुट बेचता हो, पकौड़े बेचता हो, उसको कभी पैसों की जरूरत होती है। बैंक के दरवाजे उसके लिए बंद हैं। तो बेचारा जाता है साहूकार के पास। और साहूकार के पास जा करके ऊंचे ब्याज से पैसा लेता है। और फिर ब्याज के चक्कर में ऐसा फंस जाता है, ऐसा फंस जाता है, रुपये तो जाते ही जाते हैं, लेकिन ब्याज देने का कभी बंद नहीं होता है और पूंजी तो जाती ही नहीं है और बेचारा गरीब नया अपना धंधा रोजगार विकसित नहीं कर सकता है। हमने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना बनाई और बैंक वालों को कहा यह देश गरीबों के लिए है, यह सरकार गरीबों के लिए है, यह बैंक भी गरीबों के लिए है। बिना गारंटी ऐसे छोटे-छोटे काम करने वाले जो लोग हैं, उनको बैंक से पैसा मिलना चाहिए, लोन मिलना चाहिए। और मेरे काशी के भाईयों-बहनों मुझे आपको यह बताते हुए गर्व होता है तीन करोड़ 30 लाख उससे भी ज्यादा लोगों को करीब-करीब सवा लाख करोड़ रुपये से ज्यादा दे दिया गया। कोई गारंटी केबिना दे दिया गया। और उसने अपने कारोबार को बढ़ा दिया, एक रिक्शा थी तो दो रिक्शा ले आया। एक टेक्सी थी तो दो टेक्सी ले आया। एक नौकर रखता था तो दो नौकर रख लिया, एक अखबार बैचता था तो चार अखबार बेचना शुरू कर दिया। 10 घरों में दूध देता था तो 20 घरों में दूध पहुंचाने लग गया। उसका कारोबार वो बढ़ाने लग गया। देश के इस आर्थिक काम में 60 percent से ज्यादा पैसे लाने वाले कौन है, जिसको बैंक का पैसा मिला है। दलित है, आदिवासी है, ओबीसी है, पिछड़ी जाति के लोग हैं और उसमें भी 22 प्रतिशत महिलाएं हैं। जिनको बैंकों ने लाखों रुपया दिया है। और मैंने बैंक वालों को पूछा, मैंने कहा भई क्या अनुभव है, नहीं-नहीं बोले साहब ये लोग समय पर आकर ब्याज दे जा रहे हैं। समय पर आ करके अपना हफ्ता दे जा रहे हैं। कभी उनको पूछना ही नहीं पड़ता है। मैंने कहा यही तो ईमानदार लोग हैं, उनके ऊपर भरोसा कीजिए देश आगे बढ़ जाएगा। भाईयों-बहनों विकास कैसे किया जा सकता है। इसका यह उदाहरण है।
जिस देश के गरीब ऐसी ऊंची भावना रखते हों, उन गरीबों के लिए जिंदगी खपाने का आनंद आएगा कि नहीं आएगा? उनके लिए काम करने का मजा आएगा कि नहीं आएगा? ऐसे गरीबों के लिए काम करें तो जीवन में संतोष मिलेगा कि नहीं मिलेगा? और इसलिए भाइयो, बहनों मुझे इतना आनंद इतना संतोष होता है, मेरे इन गरीब भाइयो, बहनों के लिए काम करता हूं, दिन-रात दौड़ने का मन करता रहता है। हमने प्रधानमंत्री जन-धन योजना में जो बैंक खाता खोलेगा लेकिन वो पड़ा रहने देना नहीं है, भले 5 रुपया है तो 5 रुपया जाना है, डालना है, निकालना है, डालना है, निकालना है। वो बैंक वाला मेहनत करेगा, करने दो। आप आदत डालो, बैंक में जाने की आदत डालो। बैंक वालों को भूलने मत दो। उनको भूलने मत दो। उनको याद रखना चाहिए कि देश गरीबों के लिए है, ये सरकार गरीबों के लिए है, ये बैंक भी गरीबों के लिए है। लेकिन अगर आप बैंक में जाना ही बंद कर दोगे तो वो तो भूल जाएगा। तो मेरी देश के सभी गरीबों से प्रार्थना है कि अपने जन-धन एकाउंट खोला है लेकिन महीने में एक दो बार बैंक में जाया करो। पांच, दस रुपया, पंद्रह रुपया रखते चलो कभी जरूरत पड़े तो निकालते चलो। बैंक में आप काम लेना सीखो। और अगर वो गया तो सरकार में गरीब अगर बैंक में खाता खोलता है तो उसका दो लाख रुपये का बीमा लिया है मेंने, दो लाख रुपये का बीमा। अगर उसके परिवार में कुछ हो गया तो दो लाख रुपया उसको तुरंत पहुंच जाएगा। ये व्यवस्था की है भाइयो। लेकिन ये तब होगा अगर हमारा गरीब बैंक में regular खाता चालू रखेगा। एक बार खोला, रखा, छोड़ दिया तो ये फायदा नहीं मिलगा। और इसलिए मैं आपका प्रतिनिधि हूं, सांसद के नाते आपने मुझे बिठाया है। मैं चाहता हूं मेरे बनारस में इसका सबसे ज्यादा फायदा लोग लें।
हमने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना लाए। ये मुद्रा योजना क्या है? हमारे देश में गरीब व्यक्ति उसको बेचारे को ज्यादा पैसे नहीं चाहिए। पांच सौ, हजार करोड़ रुपया नहीं चहिए उसको। उसको तो पांच हजार रुपया, दस हजार रुपया, पचास हजार रुपया, लाख रुपया, दो लाख रुपया। धोबी होगा, नाई होगा, प्रसाद बेचने वाला होगा, फूल बेचने वाला होगा, पूजा का सामान बेचने वाला होगा, गरीब आदमी, छोटा-छोटा काम करने वाला चाहे दूध बेचता हो, चाय बेचता हो, बिस्कुट बेचता हो, पकौड़े बेचता हो, उसको कभी पैसों की जरूरत होती है। बैंक के दरवाजे उसके लिए बंद हैं। तो बेचारा जाता है साहूकार के पास। और साहूकार के पास जा करके ऊंचे ब्याज से पैसा लेता है। और फिर ब्याज के चक्कर में ऐसा फंस जाता है, ऐसा फंस जाता है, रुपये तो जाते ही जाते हैं, लेकिन ब्याज देने का कभी बंद नहीं होता है और पूंजी तो जाती ही नहीं है और बेचारा गरीब नया अपना धंधा रोजगार विकसित नहीं कर सकता है। हमने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना बनाई और बैंक वालों को कहा यह देश गरीबों के लिए है, यह सरकार गरीबों के लिए है, यह बैंक भी गरीबों के लिए है। बिना गारंटी ऐसे छोटे-छोटे काम करने वाले जो लोग हैं, उनको बैंक से पैसा मिलना चाहिए, लोन मिलना चाहिए। और मेरे काशी के भाईयों-बहनों मुझे आपको यह बताते हुए गर्व होता है तीन करोड़ 30 लाख उससे भी ज्यादा लोगों को करीब-करीब सवा लाख करोड़ रुपये से ज्यादा दे दिया गया। कोई गारंटी केबिना दे दिया गया। और उसने अपने कारोबार को बढ़ा दिया, एक रिक्शा थी तो दो रिक्शा ले आया। एक टेक्सी थी तो दो टेक्सी ले आया। एक नौकर रखता था तो दो नौकर रख लिया, एक अखबार बैचता था तो चार अखबार बेचना शुरू कर दिया। 10 घरों में दूध देता था तो 20 घरों में दूध पहुंचाने लग गया। उसका कारोबार वो बढ़ाने लग गया। देश के इस आर्थिक काम में 60 percent से ज्यादा पैसे लाने वाले कौन है, जिसको बैंक का पैसा मिला है। दलित है, आदिवासी है, ओबीसी है, पिछड़ी जाति के लोग हैं और उसमें भी 22 प्रतिशत महिलाएं हैं। जिनको बैंकों ने लाखों रुपया दिया है। और मैंने बैंक वालों को पूछा, मैंने कहा भई क्या अनुभव है, नहीं-नहीं बोले साहब ये लोग समय पर आकर ब्याज दे जा रहे हैं। समय पर आ करके अपना हफ्ता दे जा रहे हैं। कभी उनको पूछना ही नहीं पड़ता है। मैंने कहा यही तो ईमानदार लोग हैं, उनके ऊपर भरोसा कीजिए देश आगे बढ़ जाएगा। भाईयों-बहनों विकास कैसे किया जा सकता है। इसका यह उदाहरण है।
आज मैंने बलिया में रसोईगैस गरीबों को देने की योजना का प्रांरभ किया। आपको
मालूम है हमारे देश में रसोईगैस है तो अड़ोस-पड़ोस के लोगों कोदिखाते हैं
देखो मेरे घर में रसोईगैस है। और जो केरोसिन से खाना पकाते हैं या मिट्टी
के तेल से पकाते हैं या लकड़ी से पकाते हैं। उनके मन में रहता है इसके घर
में तो रसोई का सिलेंडर आ गया, मेरे घर में कब आएगा। और बेचारे गरीब लोग,
सामान्य लोग एक गैस का कनेक्शन लेने के लिए नेताओं के पीछे-पीछे दौड़ते
हैं, अरे साहब कुछ करो न, एक-आध किसी को बता दो न मुझे गैस का कनेक्शन मिल
जाए। यही चलता है कि नहीं चलता है? यही चला है कि नहीं.. और एक जमाना था
ज्यादा दूर की बात नहीं कर रहा हूं कुछ ही साल पहले एमपी को 25 रसोईगैस के
कूपन मिलते थे। एक साल में 25 और वो एमपी के घर लोग सुबह आते थे। साहब वो
एक कूपन दे दो ना मुझे गैस का कनेक्शन लेना है। बेटे की शादी होने वाली है
बहू शहर से आने वाली है। अगर गैस नहीं होगा तो शादी अटक जाएगी। हमें एक
कनेक्शन दे दो। ऐसे दिन थे और यह नेता लोग कल आना, परसो आना। अगली बार
देखेंगे, अभी खत्म हो गया। यही होता था कि नहीं होता था? भाईयों-बहनों और
एमपी भी 25 गैस के कनेक्शन दिये तो बड़ा खुश हो जाता था, वाह, वाह क्या
काम कर दिया है। भाईयों-बहनों वो भी एक सरकार थी जो 25 कनेक्शन के लिए
बहुत बड़ा काम मानती थी और यह भी एक सरकार है। आपने बनाई हुई सरकार है यह।
काशी वालों ने बिठाई हुई सरकार है यह। वो क्या कहते हैं, वो 25 कनेक्शन
का काम देते थे। हमने निर्णय कर लिया तीन साल में पांच करोड़ परिवार को गैस
का कनेक्शन दे देंगे।
भाईयों-बहनों यह काम में इसलिए कर रहा हूं कि गरीब मां जब लकड़ी का चूला जला करके खाना पकाती है, तो एक दिन में उसके शरीर में 400 सिगारेट का धुंआ जाता है। मुझे बताइये डॉक्टर कहते हैं दो सिगरेट पिओगे तो भी कैंसर हो जाएगा। कहते है कि नहीं कहते है? सिगरेट बंद करने के लिए डॉक्टर कहते हैं कि नहीं कहते हैं? यह मेरी गरीब माताओं का क्या होता होगा। क्या इन गरीब माताओं को मरने देना चाहिए? उनको बीमार होने देना चाहिए? उनके बच्चों को बीमार होने देना चाहिए? उनको इस मुसीबत से बाहर निकालना चाहिए कि नहीं चाहिए। अमीरों के लिए तो बहुत सरकारें आकर चली गई। अमीरों को देने वाली सरकार बहुत आकर गई। यह सरकार गरीबों को देने के लिए आई है। और इसलिए भाईयों-बहनों पांच करोड़ परिवारों को यह गरीब परिवार है जिनकी किसी नेता से जान-पहचान नहीं है। जिनके पास गैस का सिलेंडर लेने के लिए कनेक्शन लेने के लिए रिश्वत देने के लिए पैसे नहीं है। जिसका कोई नहीं है उसके लिए यह सरकार है मेरे भाईयों-बहनों।
और इसका परिणाम यह होगा उन माताओं की तबीयत तो अच्छी होगी, बच्चों की तबीयत अच्छी होगी। घर के अंदर अब उनको समय ज्यादा मिलेगा। अब लकड़ी जलानी नहीं पड़ेगी, लकड़ी लेने के लिए जाना नहीं पड़ेगा। और अपना बाकी समय में कुछ काम करना है, तो आराम से कर सकते हैं। यह काम करके दिया है भाई।
आज यहां आपने देखना मेरे मछुआरा भाईयों-बहनों को ई-बोट दे रहे हैं हम ई-बोर्ड। पहले चुनाव आता था तो मछुआरों को कितना डीजल देंगे, कितने में डीजल देंगे इसी की बातें हुआ करती थी। मेरे भाईयों-बहनों आज उसको इस संकट से हम बाहर कर रहे हैं। उसको उस मुसीबत से मुक्ति दिला रहे हैं। और हम ई-बोट देना शुरू कर रहे हैं। मैंने हमारे मछुआरे भाईयों से अभी मैं बात कर रहा था। मैंने उनको पूछा कि भई बताइये, दिनभर में कितना डीजल लेते हो उसने कहा साहब एक दिन में 10 लीटर डीजल लग जाता है और पांच-छह घंटे सवारी करते हैं और उसका खर्चा करीब होता है 500 रुपया। एक दिन का डीजल का खर्चा होता है पांच सौ रुपया। और उसके कारण बोट में ऐसी आवाज़ आती है ऐसी आवाज आती है वो टूरिस्ट बेचारा उसी से तंग हो जाता है उसको लगता है जल्दी उतर जाए तो अच्छा होगा। और वो मछुआरा भी अगर नाव में बैठ करके बताना चाहता है यह फलाना घाट है ढिकड़ा घाट है, यह दिखता है, ढिकड़ा वो दिखता है। उसको कुछ सुनाई नहीं देता है। टूरिस्ट को मजा नहीं आता है। अगर टूरिस्ट को मजा नहीं आएगा तो टूरिस्ट आएगा क्या? टूरिस्ट नहीं आएगा तो मछुआरों को रोजी-रोटी मिलेगी क्या? मेरे निशाद भाई-बहन कुछ कमाएंगे क्या? भाईयों-बहनों ई-बोट के कारण अब आवाज़ का नामो-निशान नहीं रहेगा। मैं अभी बोट में जाकर आया। तो मैंने उसको पूछा कि मशीन बंद तो नहीं कर दिया है। नहीं बोले मशीन चालू है, बिल्कुल आवाज़ नहीं आ रही है। बोले साहब बिल्कुल आवाज़ नहीं आ रही है। मुझे बताइये यह काशी के टूरिज्म को लाभ होगा कि नहीं होगा? ऐसे नहीं पूरे ताकत से बताओ। होगा कि नहीं होगा? अब देखना जो भी टूरिस्ट आएगा न वो पूछेगा ई-बोट कहां है, मुझे ई-बोट में बैठना है। जिसके पास ई-बोट नहीं है, वो मोदी को पकड़ेगा। मोदी जी जल्दी ई-बोट लाओ। यह होने वाला है। दूसरा, पहले उसको पांच सौ रुपया का डीजल भरना पड़ता था। अब उसकी बैटरी बोट के ऊपर छत बनाई है। उस छत के ऊपर सोलार पैनल लगेगी। इसलिए सोलार पैनल से उसकी बैटरी चार्ज हो जाएगी। उसको एक पैसे का खर्चा नहीं होगा। मुझे बताइये एक गरीब का रोज का पांच सौ रुपया बच जाए, ऐसा कभी आपने सोचा है।
सरकारें दस रुपया देंगे, दो रुपया कम करेंगे यही करती रही आज हमें एक निर्णय से मेरे गरीब मछुआरों को रोजागर पांच सौ रुपया बच जाएगा, भाईयों-बहनों। अब वो बच्चों को पढ़ाई करवा सकेगा कि नहीं करा पाएगा? मां बीमार है तो दवाई करेगा कि नहीं करेगा? अच्छा घर में कुछ लाना है तो ला पाएगा कि नहीं पाएगा? उसकी जिंदगी में बदल आएगा कि नहीं आएगा। अब वो गरीबी के खिलाफ लड़ पाएगा कि नहीं लड़ पाएगा? अब वो गरीबी को परास्त कर सकता है कि नहीं कर सकता? अब वो गरीबी को पराजित करके विजय की मुद्रा में जी सकता है कि नहीं जी सकता है? एक निर्णय कितना बड़ा परिवर्तन ला सकता है, यह आज देख रहे हैं आप।
भाईयों-बहनों यह काम में इसलिए कर रहा हूं कि गरीब मां जब लकड़ी का चूला जला करके खाना पकाती है, तो एक दिन में उसके शरीर में 400 सिगारेट का धुंआ जाता है। मुझे बताइये डॉक्टर कहते हैं दो सिगरेट पिओगे तो भी कैंसर हो जाएगा। कहते है कि नहीं कहते है? सिगरेट बंद करने के लिए डॉक्टर कहते हैं कि नहीं कहते हैं? यह मेरी गरीब माताओं का क्या होता होगा। क्या इन गरीब माताओं को मरने देना चाहिए? उनको बीमार होने देना चाहिए? उनके बच्चों को बीमार होने देना चाहिए? उनको इस मुसीबत से बाहर निकालना चाहिए कि नहीं चाहिए। अमीरों के लिए तो बहुत सरकारें आकर चली गई। अमीरों को देने वाली सरकार बहुत आकर गई। यह सरकार गरीबों को देने के लिए आई है। और इसलिए भाईयों-बहनों पांच करोड़ परिवारों को यह गरीब परिवार है जिनकी किसी नेता से जान-पहचान नहीं है। जिनके पास गैस का सिलेंडर लेने के लिए कनेक्शन लेने के लिए रिश्वत देने के लिए पैसे नहीं है। जिसका कोई नहीं है उसके लिए यह सरकार है मेरे भाईयों-बहनों।
और इसका परिणाम यह होगा उन माताओं की तबीयत तो अच्छी होगी, बच्चों की तबीयत अच्छी होगी। घर के अंदर अब उनको समय ज्यादा मिलेगा। अब लकड़ी जलानी नहीं पड़ेगी, लकड़ी लेने के लिए जाना नहीं पड़ेगा। और अपना बाकी समय में कुछ काम करना है, तो आराम से कर सकते हैं। यह काम करके दिया है भाई।
आज यहां आपने देखना मेरे मछुआरा भाईयों-बहनों को ई-बोट दे रहे हैं हम ई-बोर्ड। पहले चुनाव आता था तो मछुआरों को कितना डीजल देंगे, कितने में डीजल देंगे इसी की बातें हुआ करती थी। मेरे भाईयों-बहनों आज उसको इस संकट से हम बाहर कर रहे हैं। उसको उस मुसीबत से मुक्ति दिला रहे हैं। और हम ई-बोट देना शुरू कर रहे हैं। मैंने हमारे मछुआरे भाईयों से अभी मैं बात कर रहा था। मैंने उनको पूछा कि भई बताइये, दिनभर में कितना डीजल लेते हो उसने कहा साहब एक दिन में 10 लीटर डीजल लग जाता है और पांच-छह घंटे सवारी करते हैं और उसका खर्चा करीब होता है 500 रुपया। एक दिन का डीजल का खर्चा होता है पांच सौ रुपया। और उसके कारण बोट में ऐसी आवाज़ आती है ऐसी आवाज आती है वो टूरिस्ट बेचारा उसी से तंग हो जाता है उसको लगता है जल्दी उतर जाए तो अच्छा होगा। और वो मछुआरा भी अगर नाव में बैठ करके बताना चाहता है यह फलाना घाट है ढिकड़ा घाट है, यह दिखता है, ढिकड़ा वो दिखता है। उसको कुछ सुनाई नहीं देता है। टूरिस्ट को मजा नहीं आता है। अगर टूरिस्ट को मजा नहीं आएगा तो टूरिस्ट आएगा क्या? टूरिस्ट नहीं आएगा तो मछुआरों को रोजी-रोटी मिलेगी क्या? मेरे निशाद भाई-बहन कुछ कमाएंगे क्या? भाईयों-बहनों ई-बोट के कारण अब आवाज़ का नामो-निशान नहीं रहेगा। मैं अभी बोट में जाकर आया। तो मैंने उसको पूछा कि मशीन बंद तो नहीं कर दिया है। नहीं बोले मशीन चालू है, बिल्कुल आवाज़ नहीं आ रही है। बोले साहब बिल्कुल आवाज़ नहीं आ रही है। मुझे बताइये यह काशी के टूरिज्म को लाभ होगा कि नहीं होगा? ऐसे नहीं पूरे ताकत से बताओ। होगा कि नहीं होगा? अब देखना जो भी टूरिस्ट आएगा न वो पूछेगा ई-बोट कहां है, मुझे ई-बोट में बैठना है। जिसके पास ई-बोट नहीं है, वो मोदी को पकड़ेगा। मोदी जी जल्दी ई-बोट लाओ। यह होने वाला है। दूसरा, पहले उसको पांच सौ रुपया का डीजल भरना पड़ता था। अब उसकी बैटरी बोट के ऊपर छत बनाई है। उस छत के ऊपर सोलार पैनल लगेगी। इसलिए सोलार पैनल से उसकी बैटरी चार्ज हो जाएगी। उसको एक पैसे का खर्चा नहीं होगा। मुझे बताइये एक गरीब का रोज का पांच सौ रुपया बच जाए, ऐसा कभी आपने सोचा है।
सरकारें दस रुपया देंगे, दो रुपया कम करेंगे यही करती रही आज हमें एक निर्णय से मेरे गरीब मछुआरों को रोजागर पांच सौ रुपया बच जाएगा, भाईयों-बहनों। अब वो बच्चों को पढ़ाई करवा सकेगा कि नहीं करा पाएगा? मां बीमार है तो दवाई करेगा कि नहीं करेगा? अच्छा घर में कुछ लाना है तो ला पाएगा कि नहीं पाएगा? उसकी जिंदगी में बदल आएगा कि नहीं आएगा। अब वो गरीबी के खिलाफ लड़ पाएगा कि नहीं लड़ पाएगा? अब वो गरीबी को परास्त कर सकता है कि नहीं कर सकता? अब वो गरीबी को पराजित करके विजय की मुद्रा में जी सकता है कि नहीं जी सकता है? एक निर्णय कितना बड़ा परिवर्तन ला सकता है, यह आज देख रहे हैं आप।
आने वाले दिनों में और हमारे मछुआरे भाई-बहन। इस अपनी बोट को ई-बोट में
convert करने जाएंगे, तो एक-दो दिन तो लगेगा। तो यह एक-दो दिन हमारा मछुआरा
भूखे मरेगा क्या? कहां जाएगा, तो हमने कहा है कि तुम्हारी बोट जब
repairing में आएगी उस समय हमें उपयोग करने के लिए एक बोट हमारी तरफ से
मिलेगी दो दिन उसको चला लेना। गरीब मछुआरे की जिंदगी में कैसे बदलाव लाया
जा सकता है यह मैंने आज उनको समझाया। मैंने कहा बोट में हम एक चार्जर भी
लगाएंगे। मोबाइल फोन का चार्जर तो जो टूरिस्ट बैठेगा उसको अगर अपना मोबाइल
फोन चार्ज करना है तो उसको नाव में ही जा जाएगा। यहां बैठेगा-उतरेगा तो वो
खुश हो जाएगा। आज मोबाइल फोन का बैटरी चला गया तो जैसे जिंदगी चली गई।
जैसे Heart बंद हो जाता है, ऐसा हो जाता है इंसान को। छोटी-छोटी चीजों का
ध्यान रखते हुए आज यह ई-बोट की शुरूआत और हमारे देश में यह पहला प्रयोग है
कि जहां सोलार से चलने वाली ई-बोट का बहुत बड़ा अभियान चलेगा, यह गंगा तट
पर हजारों बोट है, हजारों मेरे भाई-बहन है। मेरे नाविक भाई-बहन हैं, मेरे
केवट भाई-बहन है, मेरे मछुआरे भाई-बहन है। और इसलिए भाईयों-बहनों मेरे जीवन
के लिए आज एक बड़े संतोष का काम मुझे मिला, करने का अवसर मिला। मुझे इतना
आनंद है कि जब मेरे इन मछुआरे भाईयों-बहनों को, लेकिन मैं उनको कहूंगा कि
अब पांच सौ रुपया बचेंगे तो क्या करोगे? सबको मालूम है कि क्या करेगा। वो
नहीं करना है। यह पैसे बचेंगे, तो बच्चों की पढ़ाई के लिए बच्चों को दूध
पिलाने के लिए खर्चा करना है और पीने के लिए नहीं है। वरना तो मेरा पुण्य
कहा जाएगा और इसलिए मेरे भाईयों-बहनों यह ई-बोट आज कर रहे हैं। अभी दो-तीन
दिन पहले आपने देखा होगा भारत ने आसमान में सात सेटेलाइट छोड़े हैं। सात
सेटेलाइट, अरबों-खरबों रुपये का खर्च किया है। और उस सेटेलाइट से भारत की
अपनी जीपीएस सिस्टम बनी है। अब आप जानते हैं हमारे देश की राजनीति कैसी
है। इतना बड़ा काम हुआ हो, सात सेटेलाइट छोड़े हो, इतनी बड़ी बात बनी हो,
तो राजनीति में हमारा मन करेगा कि नहीं करेगा? कि हम कहे कि भई इस योजना का
नाम दीनदयाल उपाध्याय रख दो, इस सेटेलाइट का नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी
रख दो। आपने देखा है एक परिवार के कितने नाम है योजना पर। हमको भी मोह हो
जाता हमें भी मुंह में पानी छूट जाता है यार। कोई अपने वाले का कर ले। कभी
ये भी मन कर जाता कि किसी ऋषि मुनि का नाम दे दें। किसी संत का नाम दे दें।
लेकिन मेरे प्यारे भाइयो, बहनों ये मोदी कुछ अलग मिट्टी का बना हुआ है।
मैंने, मैंने मेरे किसी नेता के नाम पर इस योजना को नहीं रखा, न मेरे किसी
परिवारजन के नाम पर नहीं रखा। मैंने इस योजना का नाम दिया नाविक, नाविक,
नाविक नाम दिया है।
मेरे देश के करोड़ों, करोड़ों मछुआरे, उनको मैंने ये उत्तम से उत्तम श्रद्धांजलि दी है क्योंकि ये नाविक ही तो हैं जिसको कहीं जमीन नजर नहीं आती, लेकिन गहरे समंदर में छोटी नाव ले करके निकल पड़ता है। पानी के साथ जिंदादिली का खेल खेल लेता है। महीनों भर पानी में रह करके कहीं तट पर पहुंचता है और सदियों से करता आया है। ये नाविक ही तो है, और इसलिए हमने ये भारत की जीपीएस सिस्टम बनी है, उसका नाम रखा है नाविक। मेरे कोटि-कोटि मछुआरों को ये सरकार की बहुत बड़ी अंजलि है। बहुत बड़ा गौरव किया है और इसलिए दुनिया भी हमें। जब दुनिया भी पूछेगी नाविक क्या होता है तो हम समझाएंगे कि मेरे काशी में आओ बताऊं नाविक क्या होता है।
भाइयो, बहनों एक ऐसा काम किया है जो मेरे इस मछुआरा समाज को अमरत्व दे देता है, अमर बना देता है। ये काम करने का मुझे सौभाग्य मिला है। इस E-Boat के द्वारा काशी के जीवन में एक आर्थिक क्रांति आने वाली है। आज मैंने र्इ-रिक्शाएं भी दीं, और इस बार तो ई-रिक्शा उनको दी हैं जो पैडल-रिक्शा चलाते थे उनकी पैडल-रिक्शा वापिस ले ली, ई-रिक्शा दे दी। और ई-रिक्शा के कारण काशी के जीवन को गति मिल जाएगी।
मेरे देश के करोड़ों, करोड़ों मछुआरे, उनको मैंने ये उत्तम से उत्तम श्रद्धांजलि दी है क्योंकि ये नाविक ही तो हैं जिसको कहीं जमीन नजर नहीं आती, लेकिन गहरे समंदर में छोटी नाव ले करके निकल पड़ता है। पानी के साथ जिंदादिली का खेल खेल लेता है। महीनों भर पानी में रह करके कहीं तट पर पहुंचता है और सदियों से करता आया है। ये नाविक ही तो है, और इसलिए हमने ये भारत की जीपीएस सिस्टम बनी है, उसका नाम रखा है नाविक। मेरे कोटि-कोटि मछुआरों को ये सरकार की बहुत बड़ी अंजलि है। बहुत बड़ा गौरव किया है और इसलिए दुनिया भी हमें। जब दुनिया भी पूछेगी नाविक क्या होता है तो हम समझाएंगे कि मेरे काशी में आओ बताऊं नाविक क्या होता है।
भाइयो, बहनों एक ऐसा काम किया है जो मेरे इस मछुआरा समाज को अमरत्व दे देता है, अमर बना देता है। ये काम करने का मुझे सौभाग्य मिला है। इस E-Boat के द्वारा काशी के जीवन में एक आर्थिक क्रांति आने वाली है। आज मैंने र्इ-रिक्शाएं भी दीं, और इस बार तो ई-रिक्शा उनको दी हैं जो पैडल-रिक्शा चलाते थे उनकी पैडल-रिक्शा वापिस ले ली, ई-रिक्शा दे दी। और ई-रिक्शा के कारण काशी के जीवन को गति मिल जाएगी।
आने वाले दिनों में यहां के जीवन में बदलाव आएगा, पर्यावरण में बदलाव आएगा।
काशी का विकास करने का मेरा एक सपना है, लेकिन उसमें मुझे एक छोटी सी मदद
आपकी चाहिए, करोगे? करोगे? कहते तो हो, बाद में नहीं करते हो। अच्छा इस
बार पक्का? इस बार पक्का? उधर से आवाज नहीं आ रही है, पक्का? पक्का? एक
छोटा काम सफाई, स्वच्छता। अब मेरा काशी गंदा नहीं होना चाहिए। कर सकते
हो कि नहीं कर सकते भाइयो? अगर एक बार हम फैसला कर लें कि हम काशी को गंदा
नहीं होने देंगे, दुनिया भर के लोग यहां आते हैं, ऐसी साफ-सुथरी काशी देख
के जाएं, हिन्दुस्तान का शानो-शौकत बढ़ जाएगा मेरे भाइयो-बहनों, ये काम
हमें करना है। ये काम सरकार से नहीं करना है, हम भाई-बहन, नागरिक सबने
करना है। अब हर-हर महादेव कह दिया तो हो जाएगा।
आप इतनी बड़ी संख्या में आए, ये नजारा अपने-आप में मां गंगा की गोद में एक ताकत देता है भाइयो, बहनों, बहुत ताकत देता है। मैं जब भी आपके पास आता हूं मेरी सारी थकान चली जाती है। एक नई ताकत ले करके जाता हूं। फिर दौड़ता हूं, फिर काम करता हूं, फिर आपके चरणों में आके बैठ जाता हूं, फिर ताकत लेके चला जाता हूं।
भाइयो, बहनों मैं आज मेरे सभी मछुआरे भाई, बहनों को ये E-boat की शुभ भेंट देते हुए बहुत ही गर्व महसूस कर रहा हूं। लेकिन मेरी अपेक्षा है, पैसे बहुत बचने वाले हैं, इन पैसों का उपयोग बच्चों के लिए करना। इन पैसों का उपयोग बच्चों की पढ़ाई के लिए करना। देखिए गरीबी से लड़ने का ये ही रास्ता है। हमें जो गरीबी मिली, हम विरासत में अपने बच्चों को गरीबी नहीं देंगे ये तो हर मां-बाप का संकल्प होना चाहिए।
भाइयो, बहनों में आपका बहुत आभारी हूं। और में इस योजना को बहुत आगे बढ़ाने के लिए देखते ही देखते सभी नाव हमारी E-boat बन जाएं और नाविक अब तो आसमान से हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। हर पर हमारे फोन पर हमें हमारा नाविक दिखेगा, उसको लेके आगे बढ़ें। बहुत-बहुत धन्यवाद।
आप इतनी बड़ी संख्या में आए, ये नजारा अपने-आप में मां गंगा की गोद में एक ताकत देता है भाइयो, बहनों, बहुत ताकत देता है। मैं जब भी आपके पास आता हूं मेरी सारी थकान चली जाती है। एक नई ताकत ले करके जाता हूं। फिर दौड़ता हूं, फिर काम करता हूं, फिर आपके चरणों में आके बैठ जाता हूं, फिर ताकत लेके चला जाता हूं।
भाइयो, बहनों मैं आज मेरे सभी मछुआरे भाई, बहनों को ये E-boat की शुभ भेंट देते हुए बहुत ही गर्व महसूस कर रहा हूं। लेकिन मेरी अपेक्षा है, पैसे बहुत बचने वाले हैं, इन पैसों का उपयोग बच्चों के लिए करना। इन पैसों का उपयोग बच्चों की पढ़ाई के लिए करना। देखिए गरीबी से लड़ने का ये ही रास्ता है। हमें जो गरीबी मिली, हम विरासत में अपने बच्चों को गरीबी नहीं देंगे ये तो हर मां-बाप का संकल्प होना चाहिए।
भाइयो, बहनों में आपका बहुत आभारी हूं। और में इस योजना को बहुत आगे बढ़ाने के लिए देखते ही देखते सभी नाव हमारी E-boat बन जाएं और नाविक अब तो आसमान से हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा। हर पर हमारे फोन पर हमें हमारा नाविक दिखेगा, उसको लेके आगे बढ़ें। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Ref: http://www.narendramodi.in/category/speeches
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