मैं सबसे पहले ISRO के सभी वैज्ञानिकों को और ISRO की पूरी टीम को ह्रदय से
बहुत बहुत धन्यवाद करता हूँ , उनका अभिनन्दन करता हूँ| मैं सवा सौ करोड़
देशवासियों को भी इस नए नजराने के लिए अनेक अनेक शुभकामनाएं देता हूँ|
स्पेस साइंस में भारत के वैज्ञानिकों ने अविरथ पुरुषार्थ करके अनेक
सिद्धियाँ प्राप्त की हैं और आज देश अनुभव कर रहा है | स्पेस साइंस के
माध्यम से सामान्य मानविकी के जीवन में भी कितना बदलाव लाया जा सकता है|
टेक्नोलोजी मनुष्य के जीवन में भी किस प्रकार से उपकारक हो सकती है और भारत
का स्पेस टेक्नोलोजी के क्षेत्र में पदार्पण भारत के सामन्य मानव की
जिन्दगी में बदलाव के लिए, व्यवस्था में सुधार के लिए, सुगमता के लिए एक
बहुत बड़ी भूमिका अदा कर रहा है|
आज नेविगेशन के क्षेत्र में भारत ने अपना
7वां सेटेलाईट लॉन्च किया है | सातों सेटेलाईट, एक के बाद एक सफलतापूर्वक
लॉन्च किये गए | और इस सिद्धि के कारण आज भारत दुनिया के उन पाँच देशों में
आज गर्व के साथ खड़ा हो गया कि जिसमें उसकी अपनी GPS सिस्टम , उसकी अपनी
नेविगेशन सेटेलाईट सिस्टम निर्मित हो गयी| आज तक हम GPS सिस्टम के लिए अन्य
देशों की व्यवस्थाओं पर निर्भर थे| आज हम आत्मनिर्भर बने हैं| हमारे
रास्ते हम तय करेंगे , कैसे जाना , कहाँ जाना , कैसे पहुँचना , यह हमारी
अपने टेक्नोलॉजी के माध्यम से होगा |
और इसलिए भारत के वैज्ञानिकों ने आज 125
करोड़ देशवासियों को एक अनमोल तोहफा दिया है |हम जानते हैं कि आज के इस युग
में जी पी एस सिस्टम का बहुत बड़ा रोल हो गया है| हमारा एक मछुआरा भी इस
व्यवस्था के तहत मछली का कैच कहाँ ज्यादा है, मछली कैच करने के लिए कहाँ
जाना चाहिए , shortest route कौनसा होगा यह अब भारतीय सेटेलाईट के
मार्गदर्शन में काम कर पायेगा| आसमान से उसको रास्ता दिखाया जाएगा| मंजिल
का पक्का address तय किया जाएगा| अब हमारे विमानों को अगर लैंड करना है तो
बहुत सरलता से, accuracy के साथ अपनी भारतीय व्यवस्था से वह कर पायेंगे|
कहीं कोई disaster हो गया , बहुत बड़ी प्राकृतिक आपदा हो गयी, उस स्थिति में
कैसे मदद पहुंचानी है , कहाँ पहुंचानी है , specific location क्या होगा ,
यह सारी व्यवस्थाएं इस भारतीय उपग्रह के द्वारा जो नयी व्यवस्था विकसित
हुयी है , उसके कारण लाभ मिलने वाला है| इसकी क्षमता इतनी है कि कश्मीर से
कन्याकुमारी , कच्छ से कामरूप तक वह भारत के हर कोने को तो सेवा देगा ही
देगा लेकिन इसके अतिरिक्त 1500 वर्ग किलोमीटर area में भी अगर कोई सेवाएं
लेना चाहता है तो भी उसको यह सेवाएं उपलब्ध होंगी| कहने का मतलब यह है कि
हमारे पड़ोस के जो SAARC देश हमसे जुड़े हुए हैं वह भी अगर भारत की इस सेवा
का उपयोग करना चाहते हैं क्योंकि आज वे भी दुनिया के किसी न किसी देश की
सेवाएं ले करके अपना गुजारा करते हैं | अब भारत भी , अगर वह चाहते हैं तो
यह सेवा उनको उपलब्ध करा सकता है |
एक प्रकार से सदियों पहले हमारे नाविक
समंदर में कूद जाते थे, सितारों के सहारे, चन्द्र और सूर्य की गति के सहारे
वह अपनी राह तय करते थे और मंजिल पर पहुँचने का प्रयास करते थे| सदियों से
हमारे नाविक अनजान जगह पर पहुँचते थे और उनका सहारा हुआ करता था आसमानी
सितारों, चन्द्र और सूर्य की गति के सहारे वह अपने रास्ते तय करते थे | अब
विज्ञान की मदद से हम इस सेटेलाईट और टेक्नोलोजी के माध्यम से इस काम को
करने जा रहे हैं | भारत के मछुआरे, भारत के नाविक समंदर में साहस के साथ
चलने वाली हमारी सदियों पुरानी हमारी परंपरा, इसने एक अनभिज्ञ जगह पर एक
अनजान जगह पर जाने के रास्ते साहस के सिखाये हैं और इसलिए हजारों साल से
मछुआरों ने जो साहस दिखाया है , नाविकों ने जो अदम्य साहस से दुनिया में
पहुँचने का प्रयास किया है और इसलिए इस पूरी नई टेक्नोलोजी के माध्यम से
मिलने वाली सेवाओं को आज हमने तय किया है कि यह सारी व्यवस्था, हमारी यह
जीपीएस सिस्टम “नाविक” नाम से जानी जायेगी|
इस व्यवस्था को मैं देश के करोड़ों करोड़ों
मछुआरों की सदियों पुरानी परम्पराओं को आदर्श मानते हुए देश के गराब गरीब
मछुआरों को यह पूरी व्यवस्था समर्पित करने के इरादे से आज इसे ‘नाविक’ नाम
से विश्व पहचानेगा और ‘नाविक’ नाम से अब यह सेवा उपलब्ध होगी| यह हमारा
अपना नाविक होगा| हमारे मोबाइल फोन में हमारा नाविक होगा| जो नाविक हमें,
हम कहाँ हैं उसका पता दे सकता है , कहाँ जाना है उसका रास्ता दे सकता है और
कहाँ पहुँचना है , उसका भी हमें वह नाविक रास्ता दिखाएगा| और जब मैं नाविक
की बात कर रहा हूँ तो, टेक्नोलोजी की भाषा में अगर मुझे कहना है तो मैं
कहूँगा कि navigation satellite system जोकि Navigation with Indian
Constellation, NAVIC , इस रूप में आज आपके सामने समर्पित करता हूँ|
सवा सौ करोड़ देशवासियों को आज एक नया
नाविक मिल गया, नाविक जो हमें अपने रास्ते तय करने के लिए, अपना
destination तय करने के लिए हमारी मौजूदगी महसूस कराने के लिए काम आएगा| यह
आसमानी व्यवस्थाओं के लिए काम आएगा, यह जमीनी व्यवस्थाओं के लिए काम आएगा,
यह जल की व्यवस्थाओं के लिए भी काम आएगा| हमारी shipping व्यवस्थाओं को
भारत की यह सेवा ज्यादा acccuracy के साथ उपलब्ध होगी|
हमारी
रेलवे ; आज हम हमारी रेल कब कहाँ है उसको जानने के लिए जीपीस का उपयोग
करना पड़ता है | अब हम किस क्रोसिंग से रेल कहाँ प्रसार हुयी, कितने सिग्नल
से कहाँ दूर है, कहीं रेलवे की चालू ट्रेन में कोई सिग्नल देना है , सूचना
देनी है तो यह नाविक के सहारे हम दे सकते हैं| हम कार से जा रहे हैं स्कूटर
से जा रहे हैं , हमारे हाथ में मोबाइल फोन है, हम नाविक के सहारे तय कर
सकते हैं, कितना पहुंचे, कहाँ पहुँचना है , कहाँ खड़े हैं| एक प्रकार से जन
सामान्य की आवश्यकताओं की पूर्ति का काम अब हमारे वैज्ञानिकों ने Make in
India, Made in India, Made for Indian यह सपना साकार किया है | मैं आज इस
शुभ अवसर पर सवा सौ करोड़ देशवासियों को अपना नाविक देते हुए अत्यंत हर्ष और
गर्व अनुभव कर रहा हूँ| और मैं देश के वैज्ञानिकों को फिर एक बार कोटि
कोटि बधाईयाँ देता हूँ| बहुत बहुत अभिनन्दन करता हूँ और मुझे विश्वास है कि
हमारे स्पेस के साइंटिस्ट और नए करतब दिखायेंगे, और नई खोज दिखायेंगे और
भारत का नाम आसमान के उन क्षितिजों को पार करते हुए विश्व में लहराएगा
हमारा झन्डा, इसी अपेक्षा के साथ बहुत बहुत शुभकामनाएँ बहुत बहुत बधाई |
विशाल
संख्या में पधारे हुए झारखण्ड के मेरे भाईयों और बहनों और देश भर की
पंचायतों से आये हुए सभी पंचायतों के प्रतिनिधि और आज technology के माध्यम
से देश भर की लाखों पंचायतों में बैठ कर के इस कार्यक्रम में भागीदार हुए
उन सभी ग्रामवासियों को आज पंचायत राज दिवस पर मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
सामान्य
रूप से पंचायत राज दिवस दिल्ली में विज्ञान भवन में हुआ करता था। कुछ
प्रतिनिधि आते थे मान-सम्मान यही परंपरा चलती थी। हमने आ करके एक प्रयास
किया कि देश बहुत बड़ा है। दिल्ली ही देश है, इस भ्रम में से बाहर आना
चाहिए। और इसलिए हमारी कोशिश रही है कि भारत सरकार को दिल्ली से बाहर
निकाल करके हिंदुस्तान के अलग-अलग इलाकों में ले जाया करे। और इसलिए भारत
से कई कार्यक्रम, अब हम दिल्ली के बाहर जनता जनारदन के बीच में ले जाने का
एक निरंतर प्रयास करते हैं।
जब देश के किसानों के लिए soil health
card का प्रारंभ करना था, तो हमने राजस्थान चुना था, जहां पर पानी की
किल्लत रहती है, जहां किसान को बहुत सारा झूझना पड़ता है। जब हमने ‘बेटी
बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान प्रारंभ किया, तो हमने हरियाणा की धरती से किया
था। क्यों हरियाणा देश में बालकों की तुलना में कम से कम बालिकाओं वाला
राज्य था। एक बहुत बड़ी चिंता का विषय था और उस एक कार्यक्रम का परिणाम यह
आया कि हरियाणा ने साल भर के भीतर-भीतर gender ratio में अमूलचून परिवर्तन
कर दिया। बालक और बालिकाओं की संख्या बराबर करने की दिशा में वो तेज गति
से सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहे हैं। हमें जब सामान्य मानव को सुरक्षा देने
वाली जीवन योजनाओं का एक नया संस्करण सामान्य नागरिकों के लिए लाना था।
जिन राज्यों में अधिकतम गरीबी है उनमें से एक पश्चिम बंगाल में हमने उस
कार्यक्रम का आरंभ किया था। और आज मुझे खुशी है कि ‘ग्राम उदय से भारतोदय’,
पंयायत राज व्यवस्था गांवों में बसने वाले हिंदुस्तान की ओर भारत सरकार
का और भारत का प्रतिबद्धता, commitment इस अवसर को झारखंड की भगवान बिरसा
मुंडा की धरती को हमने पसंद किया है। और आज इस धरती से देश के गांववासियों
से बातचीत करने का मुझे सौभाग्य मिला है।
महात्मा गांधी कहा करते
थे कि भारत गांवों में बसा हुआ है, लेकिन हम देख रहे हैं कि आजादी के इतने
सालों के बाद, गांव और शहर के बीच खाई बढ़ती ही चली गई। जो सुविधाएं शहर
में हैं क्या गांव उसका हकदार नहीं है क्या? अगर बिजली शहर को मिलती है
तो बिजली गांव के घर तक जानी चाहिए कि नहीं जानी चाहिए? अगर शहर में बढि़या
सड़क है तो गांव के लोगों को भी आने-जाने में काम आ जाए ऐसी तो सड़क मिलनी
चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? और इन बातों को ले करके अब की बार का आपने बजट
देखा होगा, पूरे देशभर में वाह-वाही हो रही है कि आजादी के कई वर्षों के
बाद पहली बार गांवों का आदमी जी-जान से कह सके कि यह मेरा बजट है, मेरे लिए
बजट है, गांव के लिए बजट है, किसान के लिए बजट है। ऐसा विश्वास इस बजट से
प्रस्तावित हुआ है।
भाईयों-बहनों 14 अप्रैल से 24 अप्रैल यह
पंचायत राज दिवस तक ‘ग्राम उदय से भारतोदय’ देश के लाखों गांवों में 10 दिन
का एक बड़ा अभियान चलाया गया। 14 अप्रैल को इस अभियान का प्रांरभ मैंने
भारत के संविधान निर्माता श्रीमान बाबा साहब की जन्म स्थली मध्यप्रदेश
के मऊ से किया था। लाखों की तादाद में मध्यप्रदेश के नागरिक उसमें
सम्मिलित हुए थे। और 14 अप्रैल से आरंभ हुआ यह अभियान पूरे देश में अलग-अलग
विषयों पर फोकस करता हुआ, योजनाओ का आरंभ करता हुआ, नये संकल्प करता हुआ,
जागृति की नई ऊंचाईयों को पार करता हुआ, पूरे देश में चलता रहा। और यह
कार्यक्रम इतना व्यापक हुआ और मैं चौधरी वीरेंद्र सिंह और उनके विभाग के
सभी लोगों को, मैं राज्य सरकारों को हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं कि
ऐसी चमचमाती धूप में भी, ऐसी गर्मी में भी सरकार के बड़े-बड़े अधिकारी गांव
में गए। राजनेता गांव में गए, गांव में कार्यक्रम की भरमार बनी रही और
गांव को आगे बढ़ाने का एक माहौल गांव के भीतर पैदा हुआ और अपने बलबूते पर
अपने पास जो उपलब्ध resources हैं, उन resources के आधार पर गांव को आगे
बढ़ाने का संकल्प आज हिंदुस्तान भर में नजर आ रहा है।
हम देख रहे
हैं कि कुछ गांव कल्पना बाहर शहरों से भी उत्तम कभी-कभी व्यवस्थाएं
बनाने में सफल हुए हैं। अगर गांव की पंचायत व्यवस्था में बैठे हुए
प्रतिनिधि यह संकल्प करे कि गावं के लोगों ने पांच साल के लिए मुझ पर
भरोसा किया है। क्या पांच साल के अंदर मैं गांव को कुछ ऐसा दे करके जाऊं,
ताकि आने वाली पीढि़या भी याद करे कि फलाने-फलाने वर्ष में फलाने पंचायत के
प्रधान थे, फलाने पंचायत के मेम्बर थे, इन्होंने हमारे गांव में यह
बढि़या काम कर करके गए। हर किसी के मन में सभी जनप्रतिनिधियों के मन में यह
संकल्प होना चाहिए कि मैं मेरे कार्यकाल में, जिन लोगों का मैं पतिनिधि
हूं, उस क्षेत्र की भलाई में कुछ न कुछ उत्तम ऐसे काम करके जाऊंगा, जो आने
वाले दिनों में गांव को आगे जाने के लिए एक मजबूत नींव का काम करेंगे, एक
सही दिशा का काम करेंगे, एक सही गति पर ले जा करके मैं रखूंगा, यह संकल्प
हर किसी का होना चाहिए।
यह ‘ग्राम उदय से भारतोदय’ यात्रा के
द्वारा दुनिया के लोगों को अजूबा लगता है। आज हमारे देश में इन पंचायतों
में करीब-करीब 30 लाख चुने हुए प्रतिनिधि बैठे हैं। और उसमें 40 प्रतिशत
महिलाएं बैठी हैं। कुछ राज्यों ने झारखंड जैसे राज्यों ने 50 प्रतिशत
किया है, कुछ राज्यों में 33 प्रतिशत है। उसके कारण औसत मैं बताता हूं
करीब 40 प्रतिशत संख्या महिलाओं की है। यह महिलाओं की संख्य...अब काफी
समय हुआ है। मैं आज इस पंचायती राज दिवस के अवसर पर इन लाखों मेरी महिला
प्रतिनिधियों से आग्रह करना चाहता हूं। हाथ जोड़ करके विनती करना चाहता हूं
कि मेरी माताएं-बहनें आपके गांव ने आप पर भरोसा रखा है। और आप एक मां हैं,
आप एक महिला है। क्या आप अपने पंचायत में कुछ बातों के विषय में नेतृत्व
करे परिवर्तन ला सकती हो क्या? अरग 40 प्रतिशत महिलाएं पंचायत में बैठी
हो, कानून ने अपना काम कर दिया। मतदाताओं ने मत दे करके अपना काम कर दिया,
लेकिन चुने हुए प्रतिनिधि और विशेष करके महिलाएं यह संकल्प कर सकती है कि
जिस गांव में 40 प्रतिशत बहनें हम पंचायत में जा करके फैसले करते हैं,
निणर्य में भागीदार बनते हैं, क्या हम यह तय कर सकते है कि हम जिस गांवमें
बैठी हैं, अब हमारे गांव में हमारी एक भी माता या बहन या बेटी को खुले में
शौचालय के लि एनहीं जाना पड़ेगा। हम शौचालय बना करके रहेंगे। भारत सरकार
राज्य सरकार की शौचालय बनाने की योजना को हम खुद समय निकाल करके जाएंगे,
लागू करके रहेंगे और अगर मैंने कई गांव देखे हैं एक आध बुढि़या मां भी
संकल्प कर ले कि मैं अब गांव में किसी को खुले में शौच जाने के लिए मजबूर
होने दूं, ऐसी स्थिति नहीं रहने दूंगी, तो ऐसे गांव में हर घर में शौचालय
बन गए। आज भी मेरी माताओं-बहनों को खुले में शौच के लिए जाना पड़े इससे
बड़ी शर्मिंदगी की कोई बात नहीं है। और इसलिए मैं विशेष लाखों की तादाद में
चुनी हुई मेरी माताआं-बहनों से मैं आग्रह करता हूं कि आप इस बात पर ध्यान
दें।
मैं दूसरी बात उनसे करना चाहता हूं कि सरकार की तरफ से बजट
मिलता है, स्कूलों में बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन चलता है। आप
जनप्रतिनिधि है आप चौकसी करे कि सरकार के पाई-पाई का उपयोग अच्छा
मध्याह्न भोजन करके उन छोटे-छोटे बालकों के पेट में जाता है कि नहीं जाता
है। बालक तो भगवान का रूप होता है हमारे गांव का बालक कुपोषण से पीडि़त हो
यह बात अगर जनप्रतिनिधि एक महिला हो तो मुझे कभी गंवारा नहीं होनी चाहिए।
मैं इसमें बदलाव लाने के लिए एक जनप्रतिनिधि के नाते मैं अपने कर्तव्य का
पालन करूंगी, यह संकल्प मेरी उन 40 प्रतिशत माताएं बहनें, एक तिहाई गांव
में प्रधान महिलाएं हैं। क्या हम यह संकल्प कर नहीं सकते। ताकि हमारे
गांव में हमारे गरीब से गरीब बालक भी कुपोषण के शिकार न हो, उसके लिए हम
चिंता कर सके।
मैं मेरी माताओं-बहनों से एक और काम के लिए अपेक्षा
करना चाहता हूं हमारे गांव में हर साल गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाली
पांच महिलाएं या दस महिलाएं हर वर्ष उनकी प्रसूति का समय आता होगा। यह
प्रसव काल के दरमियां मैं जनप्रतिनिधि के नाते अरे गांव में गरीबी की रेखा
के नीचे जीने वाले तीन महीनों की प्रसव है या पांच महीनों की है, क्या
गांव के अंदर एक जन जागृति ला करके नौ महीने तक उसको अच्छा आहार मिले,
अच्छा पोषक खाना मिले, इसके लिए गांव मिल करके इतनी जिम्मेवारी उठा सकता
है क्या? मैं इसलिए नहीं कहतहूं कि सवाल बजट का है, मुद्दा बजट का नहीं
होता है, यह जनांदोलन जब बन जाता है, तब हमारी माताएं जो प्रसव पीड़ा के
कारण कभी मां मरती है, कभी जन्म लेने वाला बच्चा मरता है, कभी मां और
बच्चा दोनों मर जाते हैं। 21वीं सदी के हिंदुस्तान में हमारी गांव की
माताएं और जब एक प्रसव में जो मां मरती है गांव में, उसकी उम्र क्या होती
है, 25 साल, 27 साल की वो बेटी जो मां बनने वाली है कितने सपने संजो करके
उसने शादी की होगी। कितने सपने संजो करके उस परिवार में वो बहू बन कर आई
होगी। और पहली ही प्रसव में अगर वो मौत के शरण हो जाती है,तो वो परिवार
कितना तबाह हो जाता होगा। उन परिवारों कीहालत कया होती होगी। जो नौजवान इस
उम्र में अपनी पत्नी खो देता है उसकी मन:स्थिति क्या होती होगी, इतनी
बड़ी दर्दनाक पीड़ा, इस पीड़ा से मेरी 40 प्रतिशत माताएं बहनें.. अगर गांव
में जनप्रतिनिध हो और उस गांव में प्रसव के कारण मां मरे, बच्ची मरे, बेटा
मरे, बेटी मरे इस बात को हमें मिटाना है। हम जागरूकता लाए कि हम अब ऐसे
गरीब मां-बहनों की प्रसूति है तो उनको आशा-वर्कर से मिलालें। उनकी देखभाल
करे और नजदीक के दवाखाने में ही उसकी प्रसूति हो, उसके लिए हम उसको प्रेरित
करे। अगर अस्पताल में उसकी प्रसूति होती है तो उसकी जान बचने की संभावना
बढ़ जाती हैं। मेरी माताएं-बहनें आप जनप्रतिनिधि हैं। आप पंचायत में जाकर
के बैठती है और इसके लिए आप कितनी पढ़ी हैं, कितनी नहीं पढ़ी हैं, इसका
महत्व नहीं है। जिस लगन के साथ आप अपने परिवार को संभालती है वो ही ताकत
उस गांव की गरीब महिलाओं के परिवार को संभालने के लिए ताकतवर होती है, उतना
अनुभव काफी होता है और उसको लेकर के आप चल सकती हैं।
मैं
जनप्रतिनिधियों से भी आग्रह करना चाहता हूं। आज वो स्थिति नहीं है। पहले
का जमाना था कि गांव के जो एकाध सुखी परिवार होता था, वो पंचायत का प्रधान
हुआ करता था। कोई भी सरकारी अफसर आए, गांव में कोई मेहमान आए तो उसी के घर
में मीटिंग होती थी, चाय-पान होता था, कभी भोजन होता था। महीने भर में
15-20 मेहमान स्वाभाविक होते थे और उसकी आर्थिक स्थिति अगर ठीक रही तो
लोगों का स्वगत वगैरह करता था और गांव वाले भी सोचते थे कि भई इनके
जिम्मे डाल दो। लेकिन वो तब वो दिन थे जब गांवों के पास अपना कोई बजट नहीं
हुआ करता था। गांव को अपने तरीके से ही गुजारा करना होता था। बहुत कम
व्यवस्थाएं साधन की तरफ से होती थी। आज वक्त बदल चुका है। आज तो लाखों
रुपए हर साल गांव के पास आते हैं और पंचायत प्रधानों के चुनावों में भी जो
इतनी स्पर्धा आई है, उसका मूल कारण भी ये विपुल मात्रा में धन जो आ रहा
है, वो भी एक कारण है। लेकिन मैं चाहता हूं, इस धन का योजनाबद्ध तरीके से
अगर जनप्रतिनिधि अपने पांच साल के लिए तय करके, तय करे तो अपने गांव में
उत्तम से उत्तम परिणाम ला सकते हैं।
पिछले 60 साल में जो चीजें
आपके गांव में नहीं हो पाई होगी, वो चीजें आप पांच साल के भीतर-भीतर इतने
ही धन से कर सकते हैं और इसके लिए हमारी पंचायत व्यवस्था को हमें मजबूत
बनाना चाहिए। नियमित रूप से पंचायत की बैठक हो और मेरा यह विश्वास है कि
देश का भाग्य बदलने के लिए जितना महत्व दिल्ली की बड़ी से बड़ी संसद का
है, उतना ही महत्व ये मेरे गांव की संसद का है और इसलिए ग्राम सभा को भी
बल देने की आवश्यकता है। आज जब ग्राम सभा होती है, तो औसत कितनी संख्या
आती हैं? एक कहने को, कागज पर लिखने वाली ग्राम सभा होती है। अरे! ग्राम
सभा की date पहले से तय हो, उस दिन ग्रामोत्सव का माहौल हो, सुबह प्रभात
फेरी निकले, बच्चे भी ग्राम में जागरूकता लाए, छोटा-मोटा उत्सव का माहौल
हो और फिर सायं में ग्राम सभा हो तो आज ग्राम सभा में 5%-10%-15% लोग आते
हैं, महिलाएं तो बहुत कम आती हैं। कभी-कभी तो जनप्रतिनिधि भी नहीं पहुंचते
हैं। क्या हम संकल्प कर सकते हैं कि हम ऐसी ग्राम सभा करेंगे जिसमें कभी
भी गांव की आबादी के 30% लोग absent नहीं रहेंगे, ये हम संकल्प करके हम
लोगों को लाने का प्रयास कर सकते हैं। और देखिए ग्राम सभा में तय करिए, ये
करना है ऐसे करना है, पूरा गांव आपकी मदद करेगा
अगर सफाई का अभियान
चलाना है तो गांव उत्तम से उत्तम सफाई का उदाहरण दे सकता है। आज भी कई
गांव है जिन्होंने अपने बलबूते पर सफाई का अभियान चलाया है और गांव में जो
कूड़ा-कचरा इकट्ठा होता है, वो गांव के बाहर vermin-compost के bed बनाते
हैं, गड्ढे बनाते हैं, केंचुएं लाकर डालते हैं और अच्छा-सा खाद्य भी मिल
जाता है और वे फर्टिलाइजर बेचते हैं, गांव के ही किसान ले जाते हैं। गांव
में सफाई भी रहती है और खेत को अच्छा खाद भी मिलता है। ये इसलिए नहीं होता
है कि पैसे है, इसलिए होता है कि ग्राम पंचायत का प्रधान, गांव के चुने
हुए प्रतिनिधि, गांव का शिक्षक, गांव के दो-चार आज्ञावान लोग, ये जब मिलकर
के तय करते है, बदलाव आना शुरू हो जाता है। गांव सफाई के विषय में, थोड़े
से कदम उठावे, वो आर्थिक रूप से लाभप्रद होता है। ऐसा उत्तम खाद्य गांव की
सफाई से निकलता है कि हमारे खेतों की हालत को सुधार सकता है।
मैं
गांव पंचायत के मेरे प्रधानों से आग्रह करना चाहता हूं। यहाँ हम इतनी बड़ी
मात्रा में प्रतिनिधि बैठे हैं। हम चाहते होंगे कि गांव में road बने, गांव
में पंचायत का घर बने, ये सब तो चाहते होंगे, लेकिन क्या गांव में शिक्षक
हो, गांव में स्कूल हो। सरकारी बजट खर्च होता है लेकिन उसके बावजूद भी
अगर मेरे गांव के बच्चे महीने-दो महीने स्कूल जाकर के फिर जाना बंद कर
दे, तो इसकी चिन्ता पंचायत के लोगों को होती है कि नहीं होती है? अगर हमें
चिन्ता नहीं होती है, तो हम गांव के मुखिया नहीं है। अगर आज एक बच्चा
उसकी कुल स्कूल छूट जाती है, इसका मतलब यह हुआ कि भविष्य में अपने गांव
में हम एक ऐसा नौजवान तैयार कर रहे है जिसके भविष्य में अंधकार लिखा हुआ
है। अगर वह बच्चा स्कूल गया। हर हफ्ते हमने थोड़ी जानकारी ली, पूछताछ की।
कोई बच्चा अगर स्कूल नहीं जाता है तो गांव का प्रधान अगर उसके मॉ-बाप से
बात कर लेता है कि देखो भई, मास्टर जी आए थे। कह रहे थे कि फलाने का बेटा
स्कूल नहीं आ रहा है, क्या हुआ, बीमार तो नहीं है? इतना-सा अब अगर गांव
का प्रधान पूछ ले, पंचायत का सदस्य पूछ ले, तो गांव में बच्चों को स्कूल
ले जाने के लिए मॉ-बाप भी जागरूक हो जाएंगे। वो शिक्षक भी अगर उदासीन
होगा, उसकी अगर रुचि नहीं होगी लेकिन अगर गांव के पंचायत के लोग जागरूक है,
गांव जागरूक है तो वो शिक्षक भी अपनी पूरी ताकत से पढ़ाई के अंदर ध्यान
देगा और आपके गांव के बच्चों की जिन्दगी बदल देगा। और इसलिए हम पंचायत के
प्रधान के नाते, हम सिर्फ road बना कि नहीं बना, बजट आया कि नहीं आया,
इससे सीमित रहते हुए, जनसुविधा की ओर भी ध्यान दे।
हमारे यहां
पल्स पोलियो का खुराक पिलाया जाता है। कितने जनप्रतिनिधि है कि जो हफ्ते
पहले से पल्स पोलियो के काम को अपने कंधों पर उठा लेते हैं और तय करते हैं
कि हमारे गांव का कोई बच्चा टीकाकरण से बाकी नहीं रह जाएगा। पोलियो की
खुराक से बाकी नहीं रह जाएगा। हम पांच साल, हमारे कार्यकाल के दौरान
शत-प्रतिशत टीकाकरण करवा लेते हैं, पोलियो का खुराक पहुंचा देते हैं, तो
हमारा सौभाग्य होगा कि हमारे गांव में कोई भी ऐसा बच्चा नहीं होगा, कोई
भी ऐसी बच्ची नहीं होगी जिसको कभी लकवा मार जाए, वो जीवन भर दिव्यांग के
रूप में रहने के लिए मजबूर हो जाए और पूरा गांव जीवन भर उसकी तरफ दया भाव
से देखता रहे। हम चाहते हैं कि हमारा गांव स्वस्थ रहे, तो हमारे बालक
स्वस्थ होने चाहिए, हमारे बालक स्वस्थ रखने है तो हमें जो सरकार की
योजनाएं हैं, एक पंचायत के चुने हुए प्रतिनिधि के नाते उसे परिपूर्ण करने
के लिए हमें जागरूकता दिखानी होगी। हमें स्वयं नेतृत्व करना होगा।
इंद्रधनुष
योजना। पुराने जितने ऐसे बालक छूट गए है, उन बालकों को अब इस health के
cover में लाने का बड़ा अभियान है। करोड़ों-करोड़ों बालक अभी भी ऐसे है जो
किसी न किसी की कारण से इसका फायदा नहीं ले पाए हैं, या हम फायदा नहीं
पहुंचा पाए हैं। मैं पंचायत में चुनकर के बैठा हूं। मेरे गांव में मेरा
संकल्प होना चाहिए कि अब किसी भी बालक को अपंग होने की, दिव्यांग होने
की, उसके शरीर का कोई भाग लकवा मार जाए, ऐसी परिस्थिति मैं होने नहीं दूं,
यह मेरा संकल्प होना चाहिए। अगर एक के बाद एक, पंचायत में चुने हुए मेरे
प्रतिनिधि मेरे गांव के जीवन को बदलना तय करे।
हम जानते हैं वर्षा
पर हमारी खेती निर्भर है। अगर गांव में किसान परेशान है, तो गांव के बाकी
कारोबार भी बंद हो जाते हैं। लुहार की कमाई भी बंद हो जाती है, सुधार की भी
कम हो जाती है, मोची की भी कम हो जाती है, हर किसी की तकलीफ हो जाती है,
पूरा अर्थ कारण गांव का नष्ट हो जाता है। लेकिन कृषि भी, क्या हम ‘per
drop, more crop’. क्या ऐसे गांव नहीं हो सकते कि जो संकल्प करे कि हमारे
गांव के जितने किसान है, उनकी जितनी भी जमीन है, हजार बीघा होगी, दो हजार
बीघा होगी, जितनी जमीन होगी। हम पूरा गांव तय करते हैं कि हमारे गांव का एक
भी किसान अब ऐसा नहीं होगा कि जो drip irrigation और sprinkler का उपयोग न
करता हो। हम पानी बचाएंगे, हम आधुनिक खेती करेंगे, हम Soil health card
लेंगे, हम पशुपालन करवाएंगे, हम शहद के लिए मधुमक्खी का उपयोग करवाएंगे,
जहां मत्स्य उद्योग होता होगा वहां मछली पालन का करवाएंगे। हम कोशिश
करेंगे कि हमारा किसान ये जो योजनाएं हैं, उन योजनाओं का लाभ लेने के लिए
आगे कैसे आए।
आपने देखा होगा कि जिस गांव का प्रधान सक्रिय होता
है, जिस गांव के चुने हुए प्रतिनिधि सक्रिय होते हैं तो सरकार को भी,
सरकारी अधिकारियों को भी, उस गांव में काम करने का जरा मजा आता है,
क्योंकि उनको भी अपने target पूरे करने होते हैं, अपने लक्ष्यार्थ पूरे
करने होते हैं। सरकारें उनसे हिसाब मांगती है इसलिए वो भी क्या करते हैं
कि जो गांव जागरूक है, अच्छा कर सकता है, उन्हीं गांव के पास जाते हैं और
कहते हैं कि देखो ये योजना आई है आप लागू कर दो। उसके कारण होता क्या है
कि एक इलाके में जो 12-15 बहुत सक्रिय पंचायत हैं, उनको सारे फायदे पहुंच
जाते हैं और जो निष्क्रिय पंचायते, हैं वहां अफसरों का जाने का मन ही नहीं
करता है, सरकार का जाने का मन नहीं करता है और पैसे एक तरफ चले जाते हैं।
मेरे भाइयो-बहनों स्थिति अच्छी नहीं है। आप स्वयं जागरूक बनिए, आप
सक्रिय बनिए, आप नेतृत्व कीजिए। अगर आप सक्रिय बनते हैं, आप नेतृत्व करते
हैं तो मैं नहीं मानता हूं कि अफसरों को कहीं और जाने का मन करेगा। उनको
तो विश्वास होगा कि यहां के 20 गांव मेरे जिम्मे है, बीसों गांव इतने
अच्छे हैं कि सारी योजनाएं लागू हो जाएंगी। वो सारी योजनाएं उन बीसों गांव
में जाएंगी। आज पैसे की कमी नहीं है, मेरे भाइयो-बहनों। योजनाओं की कमी
नहीं है, दृष्टि की कमी नहीं है, आवश्यकता है कि धरती पर बैठे हुए, मेरे
गावं का कल्याण करने वाले पंचायत राज व्यवस्था से जुड़े हुए मेरे पंचायत
के भाई-बहन इसके लिए समर्पित भाव से काम करें।
क्या हम संकल्प कर
सकते हैं कि सरकार की योजनाओं के द्वारा गांव की अपनी सफलताओं का एक हिसाब
होता है लेकिन पांच साल के लिए गांव पांच कार्यक्रम ले सकता है। एक साल के
लिए एक कार्यक्रम। जैसे अगर कोई गांव तय करे कि हम ऐसा गांव बनाएंगे, जो
हरित गांव होगा। इस वर्ष में हम गांव में इतने पेड़ लगाएंगे और उस पेड़ को
लगाकर के पूरे गांव को हरा-भरा कर देंगे, ये संकल्प कर सकते हैं? दूसरे
साल कोई संकल्प करे कि हम ऐसा गांव बनाएंगे जहां से एक बूंद भी वर्षा का
पानी हम बाहर नहीं जाने देंगे। हम बूंद-बूंद पानी को रोकने का प्रबंध
करेंगे, हम जल संचय के लिए पूरी तरह काम करेंगे। हम यह तय कर सकते हैं कि
हमारे गांव का एक भी किसान ऐसा नहीं रहेगा जिसका Soil health card नहीं
होगा। हमारे गांव में ऐसा एक भी किसान नहीं होगा, जिसके खेत में sprinkler
या drip irrigation न हो। ऐसा मैं गांव, किसान मित्र गांव बना सकता हूं
क्या? क्या मैं यह सोच सकता हूं कि मेरा गांव जहां पर एक भी बालक dropout
नहीं करेगा? मैं ऐसा गांव बना सकता हूं जहां पर मेरा एक भी बालक किसी भी
टीकाकरण की व्यवस्था से बाकी नहीं रह जाएगा, बाहर नहीं रह जाएगा, ये मैं
संकल्प कर सकता हूं क्या? अगर मैं यह योजना बनाऊं कि मेरे गांव में
Digital India का जो movement चलने वाला है, मेरे गांव तक fiber का नेटवर्क
आने वाला है, मैं मेरे गांव में अभी से यह technology का उपयोग करने वाले
नौजवानों की टोली तैयार करके मेरे नगर गांव को भी ई-ग्राम बनाने की दिशा
में मैं काम कर सकता हूं क्या? मैं संकल्प कर सकता हूं क्या कि मेरे
गांव में एक भी बालक जन्म के कारण और जन्म के तुरंत बाद मृत्यु नहीं
होगी, उसकी भी मैं चिन्ता करूंगा? मैं यह तय कर सकता हूं कि मेरा गांव यह
बाल-मित्र गांव होगा, मेरा गांव यह बालिका-मित्र गांव होगा, मेरा गांव दहेज
मुक्त गांव होगा। ऐसे-ऐसे सामाजिक संकल्प अगर हम गांव के अंदर लेने का
एक माहौल बनाए, हर वर्ष गांव का जन्मदिन मनाए, हम तय करे कि हमारे गांव का
फलाना जन्मदिन है और उस समय गांव के जितने लोग शहरों में गए हैं वो खास
उस गांव में आने चाहिए, पूरे दिन उत्सव चलना चाहिए। गांव एक साल का
संकल्प करे कि एक साल के अंदर हमें गांव को कहां ले जाना है। पंचायत राज
व्यवस्था एक structure है। पंचायत राज व्यवस्था एक संवैधानिक
व्यवस्था है। लेकिन जब तक जनप्रतिनिधि और जनसामान्य जुड़कर के जन
आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए संकल्प लेकर के जी-जान से जुटते नहीं है,
परिणाम नहीं मिलता है।
भाइयो-बहनों, गांव के अर्थ-कारण को ताकतवर
बनाना है। गांव का अर्थ-कारण ताकतवर बनेगा तभी देश का अर्थ कारण ताकतवर
बनेगा। जब तक गांव के गरीब की खरीद शक्ति नहीं बढ़ती, देश की economy में
बल नहीं आता है और इसलिए हमारी कोशिश है कि गांव के सामान्य मानविकी की आय
कैसे बढ़े? गांव के सामान्य मानविकी की खरीद शक्ति कैसे बढ़े? हमारी
पाई-पाई का उपयोग.. मनरेगा की योजनाएं चलती हैं, लाखों रुपया-करोड़ों रुपया
आते हैं, अरबों-खरबों रुपया जाते हैं लेकिन अगर हम तय करे कि हम गांव में
मनरेगा के पैसे तो आएंगे, लोगों को काम भी मिलेगा लेकिन उसमें से हम assets
निर्माण करेंगे। जल संचय की व्यवस्थाएं करेंगे, तालाब है तो उसको गहरा
करेंगे, पानी ज्यादा आए उसकी व्यवस्था करेंगे, पेड़-पौधे लगाने हैं तो
पैसे उसमें लगाएंगे। आप देखिए, पैसों का सही उपयोग भी हमारे गांव के जीवन
को बदल सकता है।
और इसलिए मेरे पंचायत के प्यारे भाइयो-बहनों, आज
जिनको इनाम मिला है। जिन्होंने कुछ अच्छा करने का प्रयास किया है, उन
सबको, सम्मान प्राप्त करने वाले राज्यों को, उन गांवों को और उन
अधिकारियों या प्रतिनिधियों का हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं कि
उन्होंने आज देश के सामने एक उत्तम कार्य की मिसाल रखकर के भारत सरकार से
सम्मान प्राप्त किया है। लेकिन मैं आशा करूंगा कि जो उत्तम कार्य करके
सम्मान प्राप्त करने वाले लोग है वो वहीं पर न अटके, और नई चीजें सोचें,
और नई चीजें करें और देश-दुनिया के सामने एक उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करे।
उसी
प्रकार से, गांव के बाकी कामों के साथ हमें गांव की आर्थिक बाबतों को भी
देखना होगा। कुछ चौकसी की जरूरत है। मैं जब सरकार में आया तो मैंने पूछा,
18 हजार गांव ऐसे निकले कि जहां बिजली का खंभा भी नहीं पहुंचा, बिजली का
तार भी नहीं पहुंचा। अगले साल आजादी के 70 साल हो जाएंगे, 18 हजार गांव में
अगर बिजली का तार नहीं पहुंचा है, तो वे 18वीं शताब्दी में अंधेरे में जी
रहे हैं। हमने बीड़ा उठाया है कि उन 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचानी
है। एक हजार दिन में मैंने काम करने का तय किया है। मैं बराबर पीछे लगा
हूं, भारत सरकार पीछे लगी हैं, राज्य सरकारों को भी दौड़ा रहे हैं। काम हो
रहा है लेकिन कभी-कभार खबर आ जाती है, जाहिर हो जाता है कि फलाने गांव में
बिजली पहुंच गई और कोई अखबार वाला पहुंच जाता है तो पता चलता है कि वहां
तो अभी खंभा पहुंचा है। मैं गांव वालों से कहता हूं कि आप जागरूक रहिए। आप
देखिए कि अब कोई गलत जानकारी तो नहीं देता है न। अगर आप जागरूक रहे तो मुझे
इतनी चिन्ता नहीं करनी पड़ेगी। क्या मेरी चिन्ता का थोड़ा हिस्सा मेरे
गांव के मेरे साथी नहीं उठा सकते क्या? मेरे गांव के प्रतिनिधि इस बात को
नहीं उठा सकते? मैं देश के प्रतिनिधियों से कहता हूं कि आइए, कंधे से कंधा
मिलाकर के जो एक-एक सपने देखे हैं, उन सपनों को हम पूरा करे।
भाइयो-बहनों,
गांव में आज भी हमारी गरीब मॉं लकड़ी का चूल्हा जला करके खाना पकाती है।
और आप को जान कर के हैरानी होगी, वैज्ञानिको का कहना है की जब एक माँ लकड़ी
का चूल्हा जला कर के खाना पकती है, तो उसके शरीर में 400 सिगरेट जितनी धुंआ
जाता है। अगर मेरी मां के शरीर में 400 सिगरेट का धुंआ चला जाए, तो उस मां
की तबीयत का हाल क्या होगा, उन बच्चों की तबीयत का क्या हाल होगा।
क्या हम आजादी के इतने सालों के बाद 21वीं सदी में खाना बनाने के कारण
हमारी गरीब माताओं को मरने देंगे। भाईयों-बहनों अब यह नहीं चल सकता है। हम
उन्हें लकड़ी के चूल्हे से धुएं से, 400 सिगरेट के जुल्म से मुक्ति
दिलानी पड़ेगी और इसलिए हमने बीड़ा उठाया है, आने वाले तीन साल में पांच
करोड़ परिवारों में गैस का सिलेंडर देना है। आपके गांव में भी होंगे। आप
स्वयं गांव में देखें कि सरकार ने जो काम उठाया है, उसका फायदा पहुंच रहा
है कि नहीं पहुंच रहा है। सही व्यक्ति को पहुंच रहा है कि नहीं पहुंच रहा
है। इन गरीबों की मदद करना, आप देखिए कि उनकी जिंदगी में बदलाव आना शुरू हो
जाएगा। गांव के बगल के जंगल बच जाएंगे। लकड़ी कटती है, जंगल कटते हैं वो
बच जाएंगे। हम पर्यावरण की भी रक्षा करेंगे, माताओं के स्वास्थ्य की भी
चिंता करेंगे, बच्चों के भविष्य की भी चिंता करेंगे। और इसलिए मैं आपसे
आग्रह करता हूं कि हम एक भागीदारी के साथ, सहभागिता के साथ कंधे से कंधा
मिला करके देश का बड़े से बड़ा मुखिया क्यों न हो गांव के बड़े से बड़े
मुखिया से कोई बड़ा नहीं होता है। मेरे लिए गांव का मुखिया बहुत बड़ा होता
है, क्योंकि वो चाहे तो अपने नेतृत्व, अपने दिशा-दर्शन से गांव के जीवन
को बदल सकता है और एक बार हिंदुस्तान के गांव बदलने लग गए, तो इस देश को
बदलते हुए देर नहीं लगेगी।
भाईयों-बहनों जो सुविधाएं शहर में हैं
वो सुविधाएं गावं को भी मिलनी चाहिए। हमने अभी e-NAM नाम की योजना शुरू की
है। यह e-NAM योजना किसानों को बहुत बड़ा भला करेगी। अभी वो प्रारंभिक
अवस्था में है। अभी थोड़ी कमियां भी होगी, सुधार करते-करते अच्छाइयों की
ओर जाएंगे भी, लेकिन ईनाम योजना National Agriculture Market अब किसान अपने
मोबाइल फोन से तय कर सकता है कि उसने अपनी फसल कहां बेचनी है, अपनी पैदावर
कहां बेचनी है, जहां ज्यादा पैसा मिलेगा वहां बेचेगा। इसके लिए हमारे में
जागरूकता चाहिए। इन चीजों का फायदा उठाने के लिए हमारे पास व्यवस्था
होनी चाहिए, अगर हम उन बातों को करेंगे तो आप देखिए परिणाम आना शुरू हो
जाएगा।
और इसलिए मेरे प्यारे भाईयों-बहनों, खास करके मेरे गांव के
प्यारे भाईयों-बहनों हमारी कोशिश है, आज शहरों में डिजिटल नेटवर्क है,
जितना महत्व highways का है उतना ही महत्व I-ways का है। information
ways गांव के लोगों को भी वो सारी information चाहिए। और इसलिए optical
fibre network गांव-गांव पहुंचाना है। जो गांव जागृत होंगे, खेतों में से
वो पाइप डालने के लिए सुविधा दे देंगे। इतनी तेजी से काम होगा कि आपके गांव
को भी आधुनिक विश्व के साथ जोड़ने में सुविधा बनेगी। गांव स्वयं
जागरूकता दिखाए, योजनाओं की कमी नहीं है, पैसो की कमी नहीं है। समय-सीमा
में काम करने के इरादे में कमी नहीं है, आवश्यकता है चारों तरफ सहयोग की,
आवश्यकता है सक्रियता की, आवश्यकता है सही दिशा में मिल करके चलने की। एक
बार गांव चल पड़ा तो देश चल पड़ेगा।
इस विश्वास के साथ आज पंचायत
राज दिवस पर 10 दिन का महाअभियान, पहली बार देश के ढ़ाई लाख गांव में इतना
बड़ा अभियान चला है। पूरी सरकार की ताकत लग गई इसके साथ। एक प्रकार से
कार्यक्रम का समापन, लेकिन इरादों का आरंभ हो रहा है। संकल्प का आंरभ हो
रहा है। हमने 10 दिन ग्रामोदय का खाका समझ लिया है। अब शुरू होता है कि आने
वाले हमारे कार्यकाल के दरमियां जितने भी वर्ष मुझे मिले हैं अगले वर्ष तक
पंचायत के प्रधान के रूप में पंचायत के मेम्बर के रूप में एक-एक मिनट का
उपयोग, एक-एक पाई का उपयोग, एक-एक पल का उपयोग मैं, मेरे गांव को ग्रामोदय
के लिए उत्तम से उत्तम ग्रामोदय की कल्पना करके करूंगा। तभी भारतोदय का
मेरा सपना पूरा होगा। इस काम के लिए मैं एक बार आप सबको निमंत्रण देता हूं,
आपका सहयोग चाहता हूं।
मैं झारखंड सरकार का भी अभिनंदन चाहता हूं।
रघुबर दास जी का अभिनंदन करता हूं कि आप उन्होंने बड़े-बड़े शहरों में
बड़े-बड़े उद्योगों के लिए single window system की तो चर्चा सुनी है,
उद्योगकारों single window system के लिए हर सरकार बात करती है। लेकिन
रघुबर दास जो है, किसानों के लिए जीने-मरने वाली सरकार वो कहती है हम
किसानों के लिए single window प्रारंभ करेंगे। आज किसानों के लिए single
window की जो योजना प्रारंभ किया है, उनकी कल्पकता के लिए, उनके इस
योजनाबद्ध उपक्रम के लिए मैं रघुबर दास जी को और झारखंड की सरकार को हृदय
से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। बहुत-बहुत उनकी बधाई करता हूं।
इतना
बड़ा कार्यक्रम में देख रहा हूं आज 40-45 डिग्री temperature है, लेकिन जब
मैं आया पूरा stadium चकाचक भरा हुआ था। इतना बड़ा उत्साह, उमंग, इतना
बड़ा सफल कार्यक्रम करने के लिए मैं श्रीमान रघुबर दास जी और सरकार को और
झारखंड की जनता को हृदयपूर्वक बहुत-बहत अभिनंदन देता हूं और देशभर में
internet के माध्यम से टीवी के माध्यम से ग्राम सभा में जो लोग बैठे हैं
उनकी किसानों व भाईयों को उन ग्राम सभा के भाईयों, उन ग्राम पंयायत के
प्रतिनिधियों को फिर से एक बार आभार व्यक्त करता हूं अभिनंदन करता हूं और
मैं फिर से एक बार आग्रह करता हूं कि ग्रामोदय का बीड़ा उठा लीजिए,
ग्रामोदय का संकल्प ले करके चल पड़िए। आज से हम शुरू करे, अब रूकना नहीं
है, थकना नहीं है। अविराम चलते रहना, गावं के सपनों को पूरा करके रहना है।
महात्मा गांधी की 2019 में डेढ़ सौ साल होंगे, उस समय गांधी के सपनों का
गांव बना करके रहेंगे यह निराधार करके चले, इसी एक अपेक्षा के साथ आपको
बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यवाद।
सभी उपस्थित आदरणीय मुख्यमंत्रीगण सभी आदरणीय Judges,
प्रति वर्ष
इस प्रकार की एक हमारी meeting होती है। इस बार काफी विस्तृत agendas,
मुद्दे हैं। मुझे बताया गया है कि दो दिन Judges ने बड़े विस्तार से चर्चा
की है काफी अच्छे सुझाव भी आए हैं और मुझे ये भी बताया गया कि बड़े
commitment के साथ चीजों को आगे बढ़ाने का हर तरफ से प्रयास हुआ है। मैं
इसके लिए आदरणीय ठाकुर साहब और उनकी पूरी टीम को हृद्य से बहुत-बहुत बधाई
देता हूं, ताकि इन चीजों को आगे बढ़ाने के लिए सार्थक प्रयास हो रहे हैं।
पिछले
दिनों भोपाल में एक Retreat का कार्यक्रम हुआ जिसकी कल, मैं ठाकुर साहब से
सुन रहा था, जिसकी मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। की Law point के बाहर भी एक
बहुत बड़ा देश होता है तो उसको भी जानना-समझना और राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय
स्तर पर क्या चल रहा है, क्या चुनौतियां हैं, क्या संभावनाएं हैं और देश के
गणमान्य experts को बुलाया था। और सभी Judges उनको सुन रहे थे।
Question-Answer कर रहे थे। मैं समझता हुं ये परम्परा अपने आप में, एक बहुत
ही उत्तम परम्परा है। हो सकता है शायद राज्यों में भी आगे चलकर के इस
प्रकार का प्रयास हो तो शायद जो ठाकुर साहब ने...बीच में हो रहा था, लेकिन
कई वर्षों तक बंद रहा था। मैं समझता हूं काफी उत्प्रेरक होगी इस प्रकार की
चीजें जुड़ने से।
कई विषयों की यहां पर चर्चा होने वाली है इसलिये
उसकी बहुत गहराई में मैं जाता नहीं हूं। लेकिन ये सही है कि भारत के
सामान्य नागरिक को आज भी न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। भरोसा क्या! एक
आस्था है, श्रद्धा है। और ये हमारे देश की बहुत बड़ी पूंजी है। हम सबका ये
दायित्व बनता है कि इस आस्था को बरकरार रखें। उसको हम बनाए रखें। ताकि कभी
भी सामान्य मानव के जीवन में ऐसी स्थिति न आए के अब कहां जाएं। एक जगह है
जहां उसको विश्वास है कि मैं जा सकता हूं। और वो स्थिति बनाने में सरकार की
भी बहुत बड़ी जिम्मेवारी है। और मुझे विश्वास है कि सरकार अपनी
जिम्मेवारियों को निभाने में कभी भी कोताई नहीं बरतेगी।
आज ठाकुर साहब ने सही कहा कि मैं इस Law की दुनिया का व्यवक्ति नहीं रहा
हूं न ही मेरा ऐसा background रहा है तो सुप्रीम कोर्ट का जन्म कब हुआ,
क्या हुआ वो सारा विस्तार से मुझे आज इस ज्ञान का भी लाभ मिला। और उनकी
पीड़ा भी मैं समझ सकता हूं कि अगर 87 में जो बातें हुई, आज 2016 में भी वो
87 से अब तक जरूर कुछ कारण रहे होंगे या जरूर कुछ मजबूरियां रही होंगी। मैं
तो कभी उसकी डीटेल में गया नहीं हूं कि 87 में क्या हुआ था, कैसे हुआ था।
लेकिन ‘जब जगे तब सुबह’! आगे हम कुछ अच्छा करें। पीछे का जो भी बोझ है, उस
बोझ को कम करते हुए हम आगे कैसे बढ़ें।
कई कारण होंगे और एक कारण
का वर्णन अभी ठाकुर साहब ने किया कि strength अपने आप में एक बहुत बड़ा
कारण है। लेकिन कुछ समाज जीवन भी बदलाव आते हैं। इस बदलाव हम लोगों को
मालूम है कि एक जमाना था, जब गांव में एक वैद्यराज होता था और पूरा गांव
स्वस्थ रहता था। अब आज आंख का डॉक्टर हो गया, कान का अलग हो गया, पैर का
डॉक्टर अलग हो गया, heart का अलग हो गया, लेकिन बीमारी बढ़ती गई। तो ये
समस्या समाज में भी कई प्रकार की आती होगी, कैसी होगी ये हम सबको चिंतन का
विषय है कि क्या कारण है इसका?
सरकार में भी मेरा ये मत है कि
कानून बनाते समय जितनी चौकसी बरतनी चाहिए उसमे हमारे यहाँ कमी महसूस होती
है। Drafting से ले कर के, debate से ले कर के, कानून बनने तक, और वो एक
बहुत बड़ा कारण बना है की court में interpretation को ले कर के, बहुत बड़ी
मात्रा में चीजें जाती हैं। Otherwise कानून ऐसा हो कि कोई भी व्यक्ति
निर्णय करे तो दुविधा कम रहे। धीरे-धीरे उस efficiency की और जाना पड़ेगा।
दूसरा
एक है कि हमारे यहां कानूनों का ढेर बहुत है। मैंने आते ही एक काम शुरू
किया है कि इन कानूनों के बोझ से कैसे मुक्ति दिलाई जाए, सामान्य मानव को,
कानूनों की संख्या कैसे कम कराई जाए। एक कमैटी बिठाई थी करीब 1500 से 1700
ऐसे कानून ध्यान में आए हैं कि जो कभी 1800 साल के थे। कभी 1850 के, 80, 90
के ऐसे-ऐसे कानून यानी अब वो कोई irrelevant हो चुके हैं। तो ऐसा क्या
होता है कि जिसको कोई काम रोकना है, तो 200 साल पुराने कानून दिखा देता है।
देखिए ऐसा कानून था कि तुम्हारा ये नहीं होगा, तो फिर वो कोर्ट में जाता
है। तो ऐसी चीजें व्यवस्थाओं में काफी अड़चने कर रही हैं। सफाई चल रही है।
धीरे-धीरे मैं समझता हूं जितना समय मुझे मिला है, उस समय का भरपूर प्रयास
हम करेंगे। प्रक्रियाएं तेज गति से हों, जल्दी हों और आवश्यकताओं की पूर्ति
लिए प्रयास हो। ये सपने सबका काम हैं हम करते रहेंगे। करना चाहिए भी।
और
मैं तो चाहूंगा अगर ठाकुर साहब को सुविधा हो शायद कोई संवैधानिक सीमाएं
कठिनाइयां पैदा करती हों, तो कभी एकाद सरकार में से दो चार प्रमुख लोग और
आपकी टीम के भी सभी लोग बैठ कर के कमरे में इन समस्याओं के समाधान के कंधे
से कंधा मिलाकर के कैसे रास्ते निकाले जाएं। तो हो सकता है कुछ क्योंकि
आपने जो बातें बताईं जो बड़ी महत्वपूर्ण हैं। और उन महत्वपूर्ण बातों का
रास्ता भी तो खोजना होगा। सिर्फ मैं सुनकर के चला जाऊंगा ये ऐसा मैं इंसान
नहीं हूं। मैं उसको seriously लेकर के कुछ रास्ते खोजने के प्रयास करूंगा।
सफलता – असफलता तो अलग बात है लेकिन कोशिश करनी चाहिए। मैं कोशिश करना
चाहूंगा। और मुझे विश्वास है कि आप जैसे अनुभवी लोगों का साथ मिला तो मैं
तो इस field का हूं नहीं। ये मेरा लाभ भी है ये मेरा नुक्सान भी है। तो
मुझे अगर आप लोगों की मदद मिलेगी, तो हम जरूर इसका रास्ता निकालेंगे।
मुझे
याद है मैं 15 साल तक इस मीटिंग में आया हूं और हमेशा सामने बैठता था और
बाद में जब ऊपर बैठते थे तो कैमेरा वगैरह रहते नहीं थे तो जरा खुलकर बात भी
करता था मैं। और मैंने एक बार कह दिया था कि साहब कोर्ट का समय बढ़ाए तो
कैसा रहे। Vacation कम करें तो कैसा रहे। और पता नहीं मेरे पर ऐसी आफत आ गई
थी कि उसके बाद लंच था, तो लंच में कई Judges ने मुझे पकड़ा, क्या समझते
हो अपने आपको। तब मैं तो उसी दिन से डर गया था जी। लेकिन फिर भी मैं मानता
हूं कि जिसके पास जो जिम्मेवारी है, सब लोग ईमानदारी से, निष्ठा से, देश के
ग़रीब आदमी के लिए भलाई से काम कर रहे हैं, ये विश्वास हम सबको होना
चाहिए। और मुझे पूरा भरोसा है कि हमारे देश की Judiciary उस दिशा में
सक्रिय है, सजग है। मुझे पूरा भरोसा है। और हम सबको भरोसा रहेगा कि देश की
समस्याओं का समाधान भी होगा। और हम मिल बैठकर के समाधान निकालेंगे भी, मेरा
पुरा विश्वास है।
मैं फिर एक बार सभी आदरणीय मुख्यमंत्रियों ने और
सारी बातों को सुना है। वे भी उतनी ही जिम्मेवारी के साथ सरकारें चलाते
हैं। क्योंकि उनको भी जनता जनार्दन को जवाब होता है और हर पांच साल में एक
बार देना पड़ता है और अब तो बार-बार चुनाव आते हैं, इसलिये किसी न किसी रूप
में साल, पांच साल में तीन-तीन बार तो जाना ही पड़ता है। क्योंकि इस दिनों
ये चर्चा चल रही है। सभी दल मुझे कह रहे हैं कि साहब ये चुनाव लोकसभा और
विधानसभा के साथ-साथ कैसे हो। हर प्रकार से क्योंकि काफी समय जा रहा है। कई
चीजें निर्णय में चालीस-चालीस, पचास-पचास दिन इसलिये रुक जाती है क्योंकि
Code of Conduct लग जाता है। और देश में कोई न कोई जगह होती है जहां Code
of Conduct होता है। तो इन दिनों मुझे विपक्ष के सभी लीडर मिले थे, तो वो
भी कह रहे थे कि साहब कोई रास्ता निकालिए। इसलिये Assembly के और
Parliament के चुनाव साथ-साथ हो, ताकि बाकि कुछ काम हो। तो है कुछ
कठिनाईयां, उन सारी चीजों का रास्ता निकलना होगा, मिलबैठ करके निकलना होगा।
और मैं क्षमा मांगूगा कि ताकि मुझे आज यहां से झारखंड जाने के लिए
निकलना है, लेकिन फिर मैं आप सबका बहुत स्वागत करता हूं, आभार व्यक्त करता
हूं और आज दिन भर मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक होगी और कुछ न कुछ बातें
निकलेगी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
मंत्री परिषद के मेरे सहयोगी ... उपस्थित सभी महानुभाव और साथियों,
Civil Service Day देश के जीवन में भी और
हम सबके जीवन में भी और विशेषकर आपके जीवन में, सार्थक कैसे बने? क्या ये
ritual बनना चाहिए? हर साल एक दिवस आता है। इतिहास की धरोहर को याद करने का
अवसर मिलता है। यह अवसर अपने-आप में इस बात के लिए हमें प्रेरणा दे सकता
है क्या कि हम क्यों चले थे, कहां जाना था, कितना चले, कहां पहुंचे, कहीं
ऐसा तो नहीं था कि जहां जाना था वहां से कहीं दूर चले गए? कहीं ऐसा तो
नहीं था कि जहां जाना था अभी वहां पहुंचना बहुत दूर बाकी है? ये सारी बातें
हैं जो व्यक्ति को विचार करने के लिए प्रेरित करती हैं। और ऐसे अवसर होते
हैं जो हमें जरा पीछे मुड़ करके और उस कदमों को, उस कार्यकाल को एक
critical नजर से देखने का अवसर भी देते हैं। और उसके साथ-साथ, ये अवसर ही
होते हैं कि जो नए संकल्प के लिए कारण बनते हैं। और ये जीवन में हर किसी
का अनुभव होता है। सिर्फ हम यहां बैठे हैं इसलिए ऐसा नहीं है।
एक विद्यार्थी भी जब exam दे करके घर
लौटता है, एक तरफ रिजल्ट का इंतजार करता है, साथ-साथ ये भी सोचता है कि
अगले साल तो प्रारंभ से ही पढ़ूंगा। निर्णय कर लेता है कि अगले साल exam के
समय पढ़ना नहीं है मैं बिल्कुल प्रारंभ से पढ़ंगा, नियमित हो जाऊंगा, ये
खुद ही कहता है किसी को कहना नहीं पड़ता। क्योंकि वो परीक्षा का माहौल ऐसा
रहता है कि उसका मन करता है कि अगले साल के लिए कुछ बदलाव लाऊंगा हृदय
में। और जब स्कूल-कॉलेज खुल जाती हैं तो याद तो आता है कि हां, फिर सोचता
है ऐसा करें आज रात को पढ़ने के बजाय सुबह जल्दी उठ करके पढ़ेंगे। सुबह
नींद आ जाती है सोचता है कि शायद सुबह जल्दी उठ करके पढ़ना हमारे बस का
रोग नहीं है। ऐसा करें रात को ही पढ़ेंगे। फिर कभी मां को कहता है, मां जरा
जल्दी उठा देना। कभी मां को कहता है रात को ज्यादा खाना मत खिलाओ कुछ
ऐसा खिलाओ ताकि मैं पढ़ पाऊं। तरह-तरह की चीजें खोजता रहता है। लेकिन अनुभव
आता है कि प्रयोग तो बहुत होते हैं लेकिन वो ही हाल हो जाता है, फिर exam आ
जाती है फिर देर रात तक पढ़ता है, फिर note एक्सचेंज करता है, फिर सोचता
है कल सुबह क्या होगा? ये जीवन का एक क्रम बन जाता है। क्या हम भी उसी
ritual से अपने-आपको बांधना चाहते हैं? मैं समझता हूं कि फिर सिर्फ रुकावट
आती है ऐसा नहीं है, थकावट भी आती है। और कभी-कभी रुकावट जितना संकट पैदा
नहीं करती हैं उतनी थकावट पैदा करती हैं। और जिंदगी वो जी सकते हैं जो कभी
थकावट महसूस नहीं करते, रुकावट को एक अवसर समझते हैं, रुकावट को चुनौती
समझते हैं, वो जिंदगी को कहीं ओर ले जा सकते हैं। लेकिन जिनके जीवन में एक
बार थकावट ने प्रवेश कर दिया वो किसी भी बीमारी से बड़ी भयंकर होती है,
उससे कभी बाहर नहीं निकल सकता है और थकावट, थकावट कभी शरीर से नहीं होती
है, थकावट मन की अवस्था होती है जो जीने की ताकत खो देती है, सपने भी
देखने का सामर्थ्य छोड़ देती है और तब जा करके जीवन में कुछ भी न करना, और
कभी व्यक्ति के जीवन में कुछ न होना उसके अपने तक सीमित नहीं रहता है, वो
जितने बड़े पद पर बैठता है उतना ज्यादा प्रभाव पैदा करता है। कभी-कभार
बहुत ऊंचे पद पर बैठा हुआ व्यक्ति कुछ कर करके जितना प्रभाव पैदा कर सकता
है उससे ज्यादा प्रभाव कुछ न करके नकारात्मक पैदा कर देता है। और इसलिए
मैं अच्छा कर सकूं अच्छी बात है, न कर पाऊं तो भी ये तो मैं संकल्प करुं
कि मुझे जितना करना था, उसमें तो कहीं थकावट नहीं आ रही है, जिसके कारण एक
ठहराव तो नहीं आ गया? जिसके कारण रुकावट तो नहीं आ गई और कहीं मैं पूरी
व्यवस्था को ऊर्जाहीन, चेतनाहीन, प्राणहीन, संकल्प विहीन, गति विहीन
नहीं बनाए देता हूं? अगर ये मन की अवस्था रही तो मैं समझता हूं संकट बहुत
बड़ा गहरा जाता है। और इसलिए हम लोगों के जीवन में जैसे-जैसे दायित्व
बढ़ता है, हमारे अंदर नया करने ऊर्जा भी बढ़नी चाहिए। और ये अवसर होते हैं
जो हमें ताकत देते हैं।
कभी-कभार एक अच्छा विचार जितना सामर्थ्य
देता है, उससे ज्यादा एक अच्छी सफलता, चाहे वो किसी और की क्यों न हो,
वो हमारी हौसला बहुत बुलंद कर देती है। आज जो Award Winner हैं उनका
कार्यक्षेत्र हिंदुस्तान की तुलना में बहुत छोटा होगा। इतने बड़े देश की
समस्याओं के सामने एकाध चीज को उन्होंने हाथ लगाया होगा, हिसाब से लगाए
तो वो बहुत छोटी होगी। लेकिन वो सफलता भी यहां बैठे हुए हर किसी को लगता
होगा अच्छा, इसका ये भी परिणाम हो सकता है? अच्छा अनंतनाग में भी हो सकता
है? आनंदपुर में भी हो सकता है? हर किसी के मन में विचार आंदोलित करने का
काम एक सफल गाथा कर देती है।
और इसलिए Civil Service Day के साथ
ये प्रधानमंत्री Award की जो परंपरा रही है उसको एक नया आयाम इस बार देने
का प्रयास किया गया। कुछ Geographical कठिनाइयां हैं कुछ जनसंख्या की
सीमाएं हैं। तो ऐसी विविधताओं से भरा हुआ देश है तो उसको तीन ग्रुप में कर
करके कोशिश की लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इतनी भारी scrutiny भी
हो सकती हैं सरकारी काम में। वरना तो पहले क्या था application लिख देते
थे और कुछ लोगों को बहुत अच्छा रिपोर्ट बनाने का आता भी है तो jury को
प्रभावित भी कर देते हैं। और इस बार प्रभावित करने वाला कोई दायरा ही नहीं
था। क्योंकि call-center से सैंकड़ों फोन करके पूछा गया भई आपके यहां ये
हुआ था क्या हुआ ? Jury ने physically वहां meeting की। Video
Conferencing से यहीं से Viva किया गया। यानी अनेक प्रकार की कोशिश करने के
बाद एक कुछ अच्छाइयों की ओर जाने का प्रयास हुआ है। लेकिन जो अच्छा होता
है उसका आनंद होता है, इतनी बड़ी प्रक्रिया हुई जैसे।
लेकिन मेरे
मन में एक विचार आया कि 600-650 से ज्यादा जिले हैं। हमारी चुनौती यहां
शुरू होती है कि पहले से बहुत अच्छा हुआ, क्योंकि करीब 74 सफलता की
गाथाएं short-list हुईं हैं। वो पहले से कई गुना ज्यादा है। और पहले से कई
गुना ज्यादा होना, वो अपने आप में एक बहुत बड़ा समाधान का कारण है। लेकिन
जिसके जीवन में थकावट नहीं है, रूकावट का वो सोच ही नहीं सकता है, वो दूसरे
तरीके से सोचता है कि 650-700 जिलों में से 10% ही short-list हुए, 90%
छूट गये! क्या ये 90% लोगों के लिए चुनौती बन सकती है? उस district के लिए
चुनौती बन सकती है कि भले हम सफलता पाएं या न पाएं, पर short-list तक तो हम
अपने जिलों को ला करके रहेंगे। अपनी पसंद की एक योजना पकड़ेंगे, इसी वर्ष
से पकड़ लेंगे और उस स्तुइदेन्त की तरह नहीं करेंगे, आज इसी Civil Service
Day को ही तय करेंगे की अगली बार इस मंच पर होंगे और हम award ले कर के
जायेंगे। हिंदुस्तान के सभी 650 से भी अधिक districts के दिमाग में ये
विश्वास पैदा होना चाहिए।
74 पहले की तुलना में बहुत बड़ा figure
है, बहुत बड़ा प्रयास है, लेकिन अगर मैं उससे आगे जाने के लिए सोचता हूं
तो मतलब यह है कि थकावट से मैं बंधन में बंधा हुआ नहीं हूं। मैं रूकावट को
स्वीकार नहीं करता हूं, मैं कुछ और आगे करने के लिए चाहता हूं। यह भाव,
यह संकल्प भाव इस टीम में आता है और जो लोग वीडियो कॉन्फ्रेन्स पर मुझे
सुन रहे हैं अभी, कार्यक्रम में, उन सब अफसर साहब, उनके भी दिमाग में भाव
आएगा। वो राज्य में चर्चा करे कि क्या कारण है कि हमारा राज्य नजर
नहीं आता है। उस district में भी बैठी हुई टीम भी सोचे कि क्या कारण है
कि आज मेरे district का नाम नहीं चमका। एक healthy competition, क्योंकि
जब से सरकार में कुछ बातों को लेकर के मैं आग्रह कर रहा हूं। उसमें मैं एक
बात कहता हूं, cooperative federalism लेकिन साथ-साथ मैं कहता हूं
competitive cooperative federalism राज्यों के बीच विकास की स्पर्धा
हो, अच्छाई की स्पर्धा हो, good governance की स्पर्धा हो, best
practices की स्पर्धा हो, values की स्पर्धा हो, integrity की स्पर्धा
हो, accountability, responsibility की स्पर्धा बढ़े, minimum governance
का सपना स्पर्धा के तहत आगे निकल जाने का प्रयास हो। यह जो competitive
की बात है वो district में भी feel होना चाहिए। इस civil service day के
लिए हम संकल्प करें कि हम भी दो कदम और जाएंगे।
दूसरी बात है, हम लोग जब civil service
में आए होंगे। कुछ लोग तो परंपरागत रूप से आए होंगे, शायद family tradition
रही होगी। तीन-चार पीढ़ी से इसी से गुजारा करते रहे होंगे, ऐसे कई लोग
होंगे। कुछ लोगों को यह भी लगता होगा कि बाकी छोड़ो साहब, यह है एक बार
अंदर पाइपलाइन में जगह बना लो। फिर तो ऐसे ही चले जाएंगे। फिर तो वक्त
ही ले जाता है, हमें कहीं जाना नहीं पड़ता है। 15 साल हुए तो यहां पहुंच
गए, 20 साल हो गए तो यहां पहुंच गए, 22 साल हो गए तो यहां पहुंच गए और जब
बाहर निकलेंगे तो करीब-करीब तीन में से एक जगह पर तो होंगे ही होंगे। उसको
निश्चित भविष्य लगता है। सत्ता है, रूतबा है तो आने का मन भी करता
है और वो गलत है ऐसा मैं नहीं मानता हूं। मैं ऐसा मानने वालों में से नहीं
हूं कि गलत है, लेकिन सवा सौ करोड़ देशवासियों में से कितने है जिनको
यह सौभाग्य मिलता है। अपने परिश्रम से मिला है, अपने बलबूते पर मिला
है फिर भी, यह भी तो जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य है कि सवा सौ करोड़ में
से हम एक-दो हजार, पाँच हजार, दस हजार, पंद्रह हजार लोग है जिनको यह
सौभाग्य मिला है। हम जो कुछ भी है। कोई एक ऐसी व्यवस्था है जिसने मुझे
इन सवा सौ करोड़ के भाग्य को बदलने के लिए मौका दिया है। इतने बड़े
जीवन के सौभाग्य के बाद अगर कुछ कर दिखाने का इरादा नहीं होता तो यहां
पहुंचने के बाद भी किस काम का है और इसलिए तो कभी न कभी जीवन में.. मुझे
बराबर याद है मैं आज से 35-40 साल पहले.. मैं तो राजनीति में बहुत देर से
आया। सामाजिक जीवन में मैंने अपने आपको खपाया हुआ था। तो मैं कभी
यूनिवर्सिटी के दोस्तों से गप्पे-गोष्ठी करने चला जाता था, मिलता था,
उनसे बात करता था और एक बार मैंने उनसे पूछा क्या सोचा, आगे क्या करोगे?
तो हर कोई बता रहा था, पढ़ाई के बाद सोचेंगे। कुछ बता रहे थे कि नहीं ये
पिताजी का व्यवसाय है वहीं करूंगा। एक बार मेरा अनुभव है, एक नौजवान था,
हाथ ऊपर किया, उसने कहा मैं आईएएस अफसर बनना चाहता हूं। मैंने कहा क्यों
भई तेरे मन में ऐसे कैसे विचार आया? इसलिए मैंने कहा, क्योंकि वहां
उनका जरा रूतबा होता है। बोले – नहीं, मुझे लगता है कि मैं आईएएस अफसर
बनूंगा तो मैं कइयों की जिन्दगी में बदलाव ला सकता हूं, मैं कुछ अच्छा
कर सकता हूं। मैंने कहा राजनीति में क्यों नहीं जाते हो, वहां से भी तुम
कुछ कर सकते हो। नहीं बोले, वो तो temporary होता है। उसकी इतनी clarity
थी। यह व्यवस्था में अगर मैं गया तो मैं एक लंबे अर्से तक sustainably
काम कर सकता हूं।
आप उस ताकत के लोग है और इसलिए आप
क्या कुछ नहीं कर सकते हैं वो आप भली-भांति जानते हैं। उसका अहसास कराने
की आवश्यकता नहीं होती। एक समय होगा, हालात भी ऐसे रहे होंगे।
व्यवस्थाएं बनानी होगी, एक सोच भी रही होगी और ज्यादातर हमारा role एक
regulator का रहा है। काफी एक-दो पीढ़ी ऐसी हमारी इस परंपरा की रही होगी
कि जिनका पूरा समय, शक्तिregulator के रूप में गया होता है। उसके बाद
से शायद एक समय आया होगा जिनमें थोड़ा सा दायरा बदला होगा। administrator
का रूप रहा होगा। administrator के साथ-साथ कुछ-कुछ controller का भी थोड़ा
भाव आया होगा। उसके बाद थोड़ा कालखंड बदला होगा तो लगा होगा कि भई अब
हमारी भूमिका regulator की तो रही नहीं। Administrator या controller से
आगे अब एक managerial skill develop करना जरूरी हो गया है क्योंकि एक साथ
कई चीजें manage करनी पड़ रही है।
हमारा दायित्व बदलता गया है
लेकिन क्या 21वीं सदी के इस कालखंड में यहीं हमारा रूप पर्याप्त है
क्या? भले ही मैं regulator से बाहर निकलकर के लोकतंत्र की spirit के
अनुरूप बदलता-बदलता administrator से लेकर के managerial role पर पहुंचा
हूँ। लेकिन मैं समझता हूं कि 21वीं सदी जो पूरे वैश्विक स्पर्धा का
युग है और भारत अपेक्षाओं की एक बहुत बड़ी.. एक ऐसा माहौल बनाए जहां हर
किसी न किसी को कुछ करना है, हर किसी को कुछ न कुछ आगे बढ़ना है। हर
किसी को कुछ न कुछ पाना भी है। कुछ लोगों को इससे डर लगता होगा। मैं इसे
अवसर मानता हूं। जब सवा सौ करोड़ देशवासियों के अंदर एक जज़बा हो कि कुछ
करना है, कुछ पाना है, कुछ बनना है। वो अपने आप में देश को आगे बढ़ाने का
कारण होता है। ठीक है यार, पिताजी ऐसा छोड़ कर गए अब चलो भई, क्या करने
की जरूरत है, शौचालय बनाने की क्या जरूरत है। अपने मॉ-बाप कहां शौचालय
में, ऐसे ही गुजारा करके गए। अब वो सोच नहीं है, वो कहता है नहीं,
जिन्दगी ऐसी नहीं, जिन्दगी ऐसी चाहिए। देश को बढ़ने के लिए यह अपने
आप में एक बहुत बड़ा ऊर्जा तत्व है। और ऐसे समय हम administrator हो, हम
controller हो, collector हो, यह sufficient नहीं है। अब समय की मांग है
कि व्यवस्था से जुड़ा हुआ हर पुर्जा, छोटी से छोटी इकाई से लेकर के बड़े
से बड़े पद पर बैठा हुआ व्यक्ति वो agent of change बनना समय की मांग
है। उसने अपने आप को उस रूप से प्रस्तुत करना पड़ेगा, उस रूप से करना
पड़ेगा ताकि वो उसके होने मात्र से, सोचने मात्र से, करने मात्र से change
का अहसास दिखाई दे और आज या तो कल दिखाई देगा, वो इंतजार होना नहीं है।
हमें उस तेजी से change agent के रूप में काम करना पड़ेगा कि हम
परिस्थितियों को पलटे। चाहे नीति में हो, चाहे रणनीति में हो, हमें
बदलाव लाने के लिए काम करना पड़ेगा।
कभी-कभार एक ढांचे में जब
बैठते हैं तब experiment करने से बहुत डरते हैं। कहीं फेल हो जाएंगे, कहीं
गलत हो जाएगा। अगर हम experiment करना ही छोड़ देंगे, फिर तो व्यवस्था
में बदलाव आ ही नहीं सकता है और experiment कोई circular निकाल करके नहीं
होता है। एक भीतर से वो आवाज उठती है जो हमें कहीं ले जाती है और जिनको
लगता है कि भई कहीं कोई risk न हो, वो experiment तो ठीक है। बिना risk
के जो experiment होता है वो experiment नहीं होता है, वो तो plan होता है
जी। Plan और experiment में बहुत बड़ा अंतर होता है। Plan का तो आपको पता
है कि ऐसा होना है, यहां जाना है, experiment का plan थोड़ी होता है और
मैं हमेशा experiment को पुरस्कृत करता हूं। ज़रा हटके। ये करने का जो कुछ
लोग करते हैं और उनको एक संतोष भी होता है कि भई पहले ऐसा चलता था, मैंने
ये कर दिया। उसकी एक ताकत होती है।
इतने बड़े देश को हम 20-25-30 साल या पिछली शताब्दी के सोच और नियमों से
नहीं चला सकते हैं। technology ने मनुष्य जीवन को कितना बदल दिया है
लेकिन technology से बदली हुई जीवन व्यवस्था, शासन व्यवस्था में अगर
प्रतिबिंबित नहीं होती है तो दायरा कितना बढ़ जाएगा। और हम सबने अनुभव
किया है कि योजनाएं तो आती हैं, सरकार में योजनाएं कोई नई चीजें नहीं
होती हैं, लेकिन सफलता तो सरकारी दायरे से बाहर निकलकर के जन सामान्य से
जोड़ने से ही मिलती हैं। यह हम सबका अनुभव है। जब भी जन भागीदारी बढ़ी है
आपकी योजनाएं सफल होती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे लिए अनिवार्य है
कि अगर मैं civil servant हूं तो civil society के साथ engagement, ये
मेरे लिए बहुत अनिवार्य है। मैं अपने दायरे में, अपने चैम्बर में, अपनी
फाइलों के बीच देश और दुनिया को चलाना चाहता हूं, तो मुझे जन सहयोग कम
मिलता है। जिनको जरूरत है वो तो इसका फायदा उठा लेंगे, आ जाएंगे लेकिन
कुछ जागरूक लोगों की भलाई से देश बनता नहीं है। सामान्य मानविकी जो कि
जागरूक नहीं है तो भी उसके हित की बात उस तक पहुंचती हैं और वो जब
हिस्सेदार बन जाता है तो स्थितियां पलट जाती हैं।
और इसलिए
शौचायल बनाना कोई इसी सरकार ने थोड़ी किया है। जितनी सरकारें बनी होंगी
सभी सरकारों ने सोचा होगा। लेकिन वो जन आंदोलन नहीं बना। हम लोगों का काम
है और सरकारी दफ्तर में बैठे हुए व्यक्तियों का भी काम है कि हम इन
चीजों में, हमारी कार्यशैली में जनसामान्य, civil society से engagement,
हम यह कैसे बढ़ाएं, हम उन दायरों को कैसे पकड़े। आप देखिए, उसमें से आपको
एक बहुत सरलीकरण नई चीजें भी हाथ लगेगी। और नई चीजें चीजों को करने का कारण
भी बन जाती हैं और वही कभी-कभी स्वीकृति बन जाती है, नीतियों का
हिस्सा बन जाती है और इसलिए हमारे लिए कोशिश रहनी चाहिए।
अब
यह जरूर याद रखे कि हम.. हमारे साथ दो प्रकार के लोग हम जानते हैं
भली-भांति। कुछ लोगों को पूछते हैं तो वो कहते हैं कि मैं जॉब करता हूं।
कुछ लोगों को पूछते हैं तो कहते हैं कि service करता हूं। वो भी आठ घंटे
यह भी आठ घंटे, वो भी तनख्वाह लेता है यह भी तनख्वाह लेता है। लेकिन वो
जॉब कहता है यह service कहता है। यह फर्क जो है न, हमें कभी भूलना नहीं
चाहिए, हम जॉब नहीं कर रहे हैं, हम service कर रहे हैं। यह कभी नहीं भूलना
चाहिए और हम सिर्फ service शब्द से जुड़े हुए नहीं हैं, हम civil
service से जुड़े हुए हैं और इसलिए हम civil society के अभिन्न अंग है।
मैं और civil society, मैं और civil society को कुछ देने वाला, मैं और
civil society के लिए कुछ करने वाला, जी नहीं! वक्त बदल चुका है। हम सब
मैं और civil society, हम बनकर के चीजों को बदलेंगे। यह समय की मांग रहती
है। और इसलिए मैं एक service के भाव से और जीवन में संतोष एक बात का है
कि मैंने कुछ सेवा की है। देश की सेवा की है, department के द्वारा सेवा
की है, उस project के द्वारा सेवा की है लेकिन सेवा ही। हमारे यहां तो कहा
गया है - सेवा परमोधर्म:। जिसकी रग-रग में इस बात की घुट्टी पिलाई गई हो
कि जहां पर सेवा परमोधर्म है, आपको तो व्यवस्था के तहत सेवा का
सौभाग्य मिला है और वहीं मैं समझता हूं कि एक अवसर प्रदान हुआ है।
मेरा
अुनभव है। मुझे एक लंबे अरसे तक मुख्यमंत्री के नाते सेवा करने का मौका
मिला। पिछले दो साल से आप लोगों के बीच बहुत कुछ सीख रहा हूं। मैं अनुभव
से कह सकता हूं, बड़े विश्वास से कह सकता हूं। हमारे पास ये देव दुर्लभ
टीम है, सामर्थ्यवान लोग है। एक-एक से बढ़कर के काम करने की ताकत रखने
वाले लोग है। अगर उनके सामने कोई जिम्मेवारी आ जाती है तो मैंने देखा है
कि वो Saturday-Sunday भी भूल जाते हैं। बच्चे का जन्मदिन तक भूल जाते
हैं। ऐसे मैंने अफसर देखे हैं और इसलिए यह देश गर्व करता है कि हमारे पास
ऐसे-ऐसे लोग हैं जो पद का उपयोग देश को कहीं आगे ले जाने के लिए कर रहे
हैं।
अभी नीति आयोग की तरफ से एक presentation हुआ। बहुत कम लोगों
को मालूम होगा। इस स्तर के अधिकारियों ने, जब उनको ये काम दिया गया और
जैसा बताया गया, मैंने पहले दिन presentation दिया था और बाद में मैंने
उनको समय दिया था और मैंने कहा था कि मैं आपसे फिर.. इसके light में
मुझे बताइए और कुछ नया भी बताइए। और मैं आज गर्व से कह सकता हूं। कोई
circular था, उसके साथ कोई discipline के बंधन नहीं थे। अपनी स्वेच्छा से
करने वाला काम था और शायद हिन्दुस्तान के लोगों को जानकर के अचंभा होगा
कि इन अफसरों ने 10 thousand man hour लगाए। यह छोटी घटना नहीं है और
मेरी जानकारी है कि कुछ group जो बने थे, 8, 10-10, 12-12 बजे तक काम करते
थे। कुछ group बने थे जिन्होंने अपना Saturday-Sunday छोड़ दिया था और
नियम यह था कि office में अगर शाम को छह बजे के बाद काम करना है। शाम को
office hours के बाद ten thousand hours लगाकर के यह चिंतन कर-करके यह
कार्य रचना तय की गई है। इससे बड़ी घटना क्या हो सकती है जी, इससे बड़ा
गर्व क्या हो सकता है? मैंने उस दिन भी कहा था और आज भी नीति आयोग की
तरफ से कहा गया है कि हमें एक बहुत बड़े विद्वान, consultant जो
जानकारियां देते हैं। लेकिन जो 25-30 साल इसी धरती से काम करते-करते
निकले हुए लोग जब सोचते हैं तो कितनी ताकतवर चीजें दे सकते हैं, उसका यह
उत्तम उदाहरण है। अनुभव से निकली हुई चीज है और उसको वहां छोड़ा नहीं। यह
चिंतन की chain के रूप में उसको एक बार फिर से follow up के नाते reverse
gear में ले जाया गया। वो बैठे गए, वो अलग बैठा गया और उस वक्त हमने
अपने-अपने department ने अपना action plan बनाया। जिस action plan का बजट
के अंदर भी reflection दिखाई दे रहा था। बजट की कई बातें ऐसी हैं जो इस
चिंतन में से निकली थी। Political thinking process से नहीं आई थी। यह
बहुत छोटी बात नहीं है जी। इतना बड़ा involvement decision making में एक
नया work culture है, नई कार्यशैली है।
मैं कभी अफसरों से निराश
नहीं हुआ। इतने बड़े लंबे तजुर्बे के बाद मैं विश्वास से कहता हूं कि
मैं कभी अफसरों से निराश नहीं हुआ। मेरे जीवन में कभी मुझे किसी अफसर को
डांटने की नौबत नहीं आई, ऊंची आवाज में बोलने की नौबत नहीं आई है। मैं zero
experience के साथ शासन व्यवस्था में आया था। मुझे पंचायत का भी अनुभव
नहीं था। पहले दिन से आज तक मुझे कभी कोई कटु अनुभव नहीं आया। मैंने यह
सामर्थ्य देखा है। क्यों? मैंने अपनी सोच बनाई हुई है कि हर व्यक्ति
के अंदर परमात्मा ने उत्तम से उत्तम ताकत दी है। हर व्यक्ति में
परमात्मा ने जहां है, वहां से ऊपर उठने का सामर्थ्य दिया है। हर
व्यक्ति के अंदर परमात्मा है। एक ऐसा इरादा दिया है कि कुछ अच्छा
करके जाना है। कितना ही बुरा कोई व्यक्ति क्यों न हो वो भी मन में कुछ
अच्छा करके जाने के लिए सोचता है। हमारा काम यही है कि इस अच्छाई को
पकड़ने का प्रयास करे और मुझे हमेशा अनुभव आया है कि जब हरेक की
शक्तियों को मैं देखता हूं तो अपरमपार मुझे शक्तियों का भंडार दिखाई
देता है और तभी मैं आशावादी हूं कि मेरे राष्ट्र का कल्याण सुनिश्चित
है, उसको कोई रोक नहीं सकता है। इस भाव को लेकर के मैं चल पाता।
जिसके
पास इतनी बढ़िया टीम हो, देश भर में फैले हुए, हर कोने में बैठे हुए लोग
हो, उसे निराश होने का कारण क्या हो सकता है। उसी आशा और विश्वास के
साथ, इसी टीम के भरोसे, जिन सपनों को लेकर के हम चले हैं। वक्त गया होगा,
शायद गति कम रही होगी। diversion भी आए होंगे, divisions भी आए होंगे।
लेकिन उसके बावजूद भी हमारे पास जो अनुभव का सामर्थ्य है, उस अनुभव के
सामर्थ्य से हम गति भी बढ़ा सकते हैं, व्याप्ति भी बढ़ा सकते हैं,
output-outlay की दुनिया से बाहर निकलकर के हम outcome पर concentration
भी कर सकते हैं। हम परिणाम को प्राप्त कर सकते हैं।
कभी-कभार हम
senior बन जाते हैं। कभी-कभार क्या, बन ही जाते हैं, व्यवस्था ही ऐसी
है। तो हमें लगता है और ये सहज प्रकृति है। पिता अपने बेटे को कितना ही
प्यार क्यों न करते हो, उनको मालूम है कि उनका बेटा उनसे ज्यादा होनहार
है, बहुत कुछ कर रहा है लेकिन पिता की सोच तो यही रहती है कि तेरे से
मुझे ज्यादा मालूम है। हर पिता यही सोचता है कि तेरे से मैं ज्यादा
जानता हूं और इसलिए हम जो यहां बैठे हैं तो जूनियर अफसर से हम ज्यादा
जानते हैं, विचार आना। वो हम जन्म से ही सीखते आए हैं। उसमें कोई आपका
दोष नहीं है। मुझे भी यही होगा, आपको भी यही होगा। लेकिन जो सत्य है,
अनुभव होने के बावजूद भी क्या बदलाव नहीं आ जाता। आज स्थिति ऐसी है कि
पीढ़ियों का अंतर हमें अनुभव करना होगा। हम जब छोटे होंगे तब हमारी
जानकारियों का दायरा और समझ और आज के बच्चे में जमीन-आसमान का अंतर है।
मतलब हमारे बाद जो पीढ़ी तैयार होकर के आज system में आई है। भले ही हमें
इतना अनुभव नहीं होगा लेकिन हो सकता है वो ज्ञान में हमसे ज्यादा होगा।
जानकारियों में हमसे ज्यादा होगा। हमारी सफलता इस बात में नहीं है कि
तेरे से मैं ज्यादा जानता हूं, हमारी सफलता इस बात में है कि मेरा अनुभव
और तेरा ज्ञान, मेरा अनुभव और तेरी ऊर्जा, आओ यार मिला ले, देश का कुछ
कल्याण हो जाएगा। यह रास्ता हम चुन सकते हैं। आप देखिए ऊर्जा बदल जाएगी,
दायरा बदल जाएगा। हमें एक नई ताकत मिलेगी।
मैं कभी-कभी कहता हूं
कि जब आप कंप्यूटर पर काम करना सीखते हैं और ऐसी दुनिया है कि अंदर
उतरते-उतरते चले ही जाते हैं। Communication world इतना बड़ा है। लेकिन
अगर आपकी मॉं देखती है तो वो कहती है, अच्छा बेटा! तुझे इतना सारा आ गया,
बहुत सीख लिया तूने। लेकिन अगर आपका भतीजा देखता है तो कहता है क्या
अंकल आपको इतना भी नहीं आता। यह तो छोटे बच्चों को आता है, आपको नहीं आता
है। इतना बड़ा फर्क है। एक ही घर में तीन पीढ़ी है तो ऊपर एक अनुभव आएगा और
नीचे दूसरा अनुभव आएगा। क्या हम सीनियर होने के नाते इस बदली हुई
सच्चाई को स्वीकार कर सकते हैं क्या? हमारे पास वो नहीं है जो आज नई
पीढ़ी के पास है, तो मानना पड़ेगा। उसके सोचने के तरीके बदल गए हैं।
जानकारियां पाने के उसके रास्ते अलग हैं। एक चीज को खोजने के लिए आप
घंटों तक ढूंढते रहते हैं यार क्या हुआ था। वो पल भर में यूं लेकर के आ
जाता है कि नहीं-नहीं साहब ऐसा था।
हमारे
लिए यह सबसे बड़ी आवश्यकता है कि हम Civil Service Day पर यह संकल्प
करे कि नई पीढ़ी जो हमारी व्यवस्था में आई है, से एक दम जूनियर अफसर
होंगे, उनके पास हमसे कुछ ज्यादा है। उसको अवसर देने के लिए मैं अपना मन
बना सकता हूं। उसको मैं मेरे अंदर internalize करने के लिए कुछ व्यवस्था
कर सकता हूं? आप देखिए आपके department की ताकत बहुत बदल जाएगी, बहुत बदल
जाएगी। आपने जो निर्णय किए हैं उस निर्णयों को आप बड़ी, बहुत उत्सव के
साथ, उमंग के साथ भरपूर कर पाएंगे।
और भी एक बात है, सारी
समस्याओं की जड़ में है Contradiction and conflict, ये इरादतन नहीं आए
हैं, कुल मिला करके हमारी कार्यशैली जो विकसित हुई है उसने हमें यहां ला
करके छोड़ा है। Simple word में कोई कह देते हैं कि silo में काम करने का
तरीका। कुछ लोगों के लिए silo में काम करना Performance के रूप में ठीक हो
जाता है, कर लेता है। लेकिन इससे परिणाम नहीं मिलता है। अकेले जितना करे,
उससे ज्यादा टीम से बहुत परिणाम मिलता है, बहुत परिणाम मिलता है। टीम की
ताकत बहुत होती है। कंधे से कंधा मिला करके जैसे department की सफलताएं
साथियों के साथ करना जरूरी है, वैसे राष्ट्र के निर्माण के लिए department
to department कंधे से कंधे मिलना बहुत जरूरी है। अगर silo न होता तो
अदालतों में हमारी सरकार के इतने cases न होते। एक department दूसरे
department के साथ Supreme Court में लड़ रहा है, क्यों। इस department को
लगता है मेरा सही है, दूसरे department को लगता है मेरा सही है, अब
Supreme Court तय करेगी ये दोनों departments ठीक हैं कि नहीं हैं। ये
इसलिए नहीं हुआ कि कोई किसी को परास्त करना चाहता था, वहां बैठा हुआ अफसर
को किसी से झगड़ा था, क्योंकि ये केस चलता हो गया, चार अफसर उसके बाद तो
बदल चुके होंगे। लेकिन क्योंकि silo में काम करने के कारण और को समझने का
अवसर नहीं मिलता हैं। पिछले दिनों जो ये ग्रुप बना, इसका सबसे बड़ा फायदा
ये हुआ है, उस department के अफसर उसमें नहीं थे, और जो अफसर मुझे मिले में
उनसे पूछता था, मैं सिर्फ बातों को ऐसे official तरीके से काम करना मुझे
आता भी नहीं है। भगवान बचाए, मुझे सीखना भी नहीं है। लेकिन मैं बातें भोजन
के लिए सब अफसरों के साथ बैठता था, मैं उसमें बड़ा आग्रह रखता था कि मेरे
टेबल पर कौन आए हैं। मैं सुझाव देता था और फिर मैं उनको पूछता था ये तो ठीक
है आपने रिपोर्ट-विपोर्ट बनाया। लेकिन आप बैठते थे तो क्या लगता? अधिकतम
लोगों ने ये कहा कि साहब हम एक batch mate रहे हैं लेकिन सालों से अलग-अलग
काम करते पता ही नहीं था कि मेरे batch mate में इतना ताकत है इतना talent
है। बोले तो ये बैठे तो पता चला। हमें पता भी नहीं था कि मेरे इस साथी में
इस प्रकार की extra ordinary energy है। बोले साथ बैठे तो पता चला। हमें ये
भी पता नहीं कि था कि उसको समोसा पंसद है कि पकौड़ा पंसद है। साथ बैठे तो
पता चला कि उसको समोसा पसंद है तो हम अगली मीटिंग में कहते कि यार तुम उसके
लिए समोसा ले आना। चीजें छोटी होती हैं, लेकिन टीम बनाने के लिए बहुत
आवश्यक होती हैं।
ये दायरो को तोड़ करके, बंधनों को छोड़ करके,
टीम के रूप में बैठते हैं तो ताकत बहुत बन जाती हैं। कभी-कभार department
में एक से ज्यादा जोड़ दें तो दो हो जाते हैं लेकिन एक department एक के
साथ एक मिल जाता है तो ग्यारह हो जाते हैं। टीम की अपनी ताकत है, आप अकेले
खाने के लिए खाने बैठे हैं तो कोई आग्रह करेगा तो एकाध दो रोटी ज्यादा
खाएंगे लेकिन छह दोस्त खाना खा रहे हैं तो पता तक नहीं चलता तीन-चार रोटी
ऐसे ही पेट में चली जाती हैं, टीम का एक माहौल होता है। आवश्यकता है कि
हमें टीम के रूप में silo से बाहर निकल करके समस्या हैं तो अपने साथी को
सीधा फोन करके क्यों न पूछें। उसके चैम्बर में क्यों न चले जाएं। वो
मेरे से जूनियर होगा तो भी चले जाओ अरे भाई क्या बात है फाइल तुम्हारे
यहां सात दिन से आई है, तुम देखो जरा noting करते हो तो जरा ये चीजें
ध्यान रखो ।
आप देखिए चीजें गति बन जाएगी। और इसलिए reform to
transform, ये जो मैं मंत्र ले करके चल रहा हूं, लेकिन ये बात सही है कि
reform से transform होता है, ऐसा नहीं है। Reform to perform to
transform, perform वाली बात जब तक हमारे, और वो हमारे बस में है। और इसलिए
हम लोगों के लिए, हम वो लोग हैं जिनके लिए Reform to perform to
transform, ये perform करना हमारे लिए, मैं नहीं मानता हूं आज vision में
कोई कमी है, दिशा में कोई कमी है। दो साल हुए इस सरकार की किसी नीति गलत
होने का अभी तक कोई आरोप नहीं लगा है। किसी ने उस पर कोई ये चुनौती नहीं की
है, ज्यादा से ज्यादा ये हुआ भई गति तेज नहीं है, कोई ये शिकायत करता
है। कोई कहता है impact नहीं आ रहा है। कोई कहता है परिणाम नहीं दिखता है।
कोई ये नहीं कहता है गलत कर रहे हो। मतलब ये हुआ कि जो आलोचना होती है उस
आलोचना को गले लगा करके हमने perform को हम कैसे बढ़ोतरी बना सकें ताकि
हमारा transform संकल्प है, वो पूरा हो सके।
Reform कोई कठिन काम
नहीं है, कठिन अगर है तो perform है। और perform हो गया तो transform के
लिए कोई नाप पट्टी ले करके बैठना नहीं पड़ता है, अपने-आप नजर आता है यहां
transformation हो रहा है। और मैं देख रहा हूं कि बदलाव आ रहा है। आज
समय-सीमा में सरकार काम करने की आदत बनी है। हर चीज मोबाइल फोन पर, app पर
monitor होने लगी है। ये अपने-आप में अच्छी चीजें आपने स्वीकार की हैं,
ये थोपी नहीं गई हैं। Department ने खुद ने तय किया है, इतने दिन में ये
करेंगे, इतने दिन में करेंगे। हम इतनी solar energy करेंगे, हम इतना पानी
पहुंचाएंगे, हम इतनी बिजली पहुंचाएंगे, हम इतने जन-धन एकाउंट खोलेंगे, आपने
तय किया है, आप पर थोपा नहीं गया है।
और जो आपने तय किया है वो
भी इतना ताकतवार है, इतना प्रेरक है कि मैं मानता हूं देश को कोई कमी नहीं
रह सकती है, हम perform करके दिखा दें बस। और मुझे विश्वास है कि ऐसी टीम
मिलना बहुत मुश्किल होता है। मैं बहुत भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसी अनुभवी
ऐसी टीम मिली है। देश भर में फैले हुए ऊर्जावान नौजवान व्यवस्था में आ
रहे हैं। वे भी पूरी ताकत से कर रहे हैं। हर किसी को लगता है गांव के जीवन
को बदलना है।
पिछली बार मैंने आप सबों से कहा था कि बहुत साल हो
गए होंगे तो एक बारी जहां पहले duty किया था वहां हो आइए न क्या हुआ। और
सभी अफसर गए हैं और उनका जो अनुभव हैं बड़े प्रेरक हैं। कुछ नहीं कहना
पड़ा, वो देख करके आया कि मैं आज से 30 साल पर जहां पहली job की थी, पहली
बार मेरी duty लगी थी, आज 30 साल के बाद वहां गया, मैं तो बहुत बदल चुका,
कहां से कहां पहुंच गया, लेकिन जिन्हें छोड़ करके आया था वहीं का वहीं रह
गया। ये सोच अपने-आप में मुझे कुछ कर गुजरने की ताकत दे देती है। किसी के
भाषण की जरूरत नहीं पड़ती है, किसी किताब से कोई सुवाक्यों की जरूरत नहीं
पड़ती है, अपने-आप प्रेरणा मिलती है। ये ही तो जगह है, 30 साल पहले मैं इसी
गांव में रहा था? इसी दफ्तर में रहा था? ये ही लोगों का हाल था? मैं वहां
पहुंच गया, वो यहीं रह गए, मेरी तो यात्रा चल पड़ी उनकी नहीं चल पड़ी। ये
सोच अगर मन में रहती है, उन लोगों को याद कीजिए जहां से आपने अपने carrier
की शुरूआत की थी। उस इलाके को याद करिए, उन लोगों को याद कीजिए, आप देखिए
आपको लगेगा कि अब तो निवृत्ति का समय भले ही दो, चार, पांच साल में आने
वाला हो लेकिन कुछ करके जाना है। ये कुछ करके जाना है, वो ही तो सबसे बड़ी
ताकत आती है और वो ही तो देश को एक नई शक्ति देती है। और मुझे विश्वास है
इस टीम के द्वारा और वैश्विक परिवेश में काम करना है। अब हम न department
silo में रह सकता है न देश silo में रह सकता है। Inter-dependent world बन
चुका है। और इसलिए हम लोगों को उसमें अपने-आपको भी जोड़ना पड़ेगा। हर बदलती
हुई परिस्थिति को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए, अवसर में पलटते
हुए काम करने का संकल्प करें।
मनरेगा में इतना पैसा जाता है। मैं
जानता हूं सूखे की स्थिति है, पानी की कमी है, लेकिन ये भी तो है कि अगला
वर्ष अच्छी वर्षा का वर्ष आ रहा है, ऐसा अनुमान किया गया है तो मेरे पास
अप्रैल, मई, जून जितना भी समय बचा है, क्या मैं मनरेगा के पैसों से जल
संचय का एक सफल अभियान चला सकता हूं? अगर आज पानी संचय की मेरी इतनी
व्यवस्था है तो desilting करके, नए तालाब खोद करके, नए canal साफ
कर-करके, मैं पूरी व्यवस्था से इस शक्ति का उपयोग जल संचय में करूं, हो
सकता है बारिश कम भी आ जाए तो भी गुजारा करने के लिए काम आ आती है। मैं
मानता हूं कि बहुत बड़ी ताकत है और जन भागीदारी से सब संभव है, सब संभव है।
इन चीजों को हम करने का संकल्प ले करके चलें।
जिन जिलों ने ये जो
सफलता पाई उन जिलों की टीमों को मैं हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं और
मैं देश भर के जिलों के अधिकारियों से आग्रह करुंगा कि अब जिले की हर टीम
ने कहीं न कहीं participation करना चाहिए। कुछ ही लोग participation करें
ऐसा नहीं, आप भी इस competition में आइए, आप भी अपने जिले में सपनों के
अनुकूल कोई चीज कर करके जाने का संकल्प करें। इसी एक अपेक्षा के साथ आप
सबको Civil Service Day पर हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। आपने जो किया
है देश उसके लिए गर्व करता है, आप बहुत कुछ कर पाएंगे, देश सीना तान करके
आगे बढ़ेगा, इस विश्वास के साथ बहुत-बहुत धन्यवाद।
मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और विशाल संख्या में पधारे मेरे भाईयों और बहनों,
मौसम बहुत अच्छा है। मैं जब महबूबा जी को
सुन रहा था, उन्होंने जिस उमंग और उत्साह के साथ जम्मू कश्मीर के
भविष्य को बनाने के लिए सपने देखें हैं संकल्प किया है। ऊर्जावान
नेतृत्व दिया है और उनकी नई सरकार बनने के बाद मुझे आज पहली बार यहां आने
का मौका मिला है। मैं उन्हें और पूरे जम्मू-कश्मीर को हृदय से बहुत-बहुत
शुभकामनाएं देता हूं। वैसे आज का यह अवसर जम्मू-कश्मीर के जीवन में एक
नया उमंग भरने वाला अवसर है, लेकिन ऐसे उमंग भरे अवसर पर मुफ़्ती साहब की
गैरहाजिरी हम महसूस करते हैं। बहुत लम्बा उनका कार्यकाल रहा सार्वजनिक
जीवन में और जब भी मेरा उनसे मिलने हुआ एक बात उनके दिमाग में रहती थी देश
को आगे बढ़ाने के लिए जम्मू-कश्मीर को आगे बढ़ाना। एक बात उनके दिल में
रहा करती थी जम्मू और श्रीनगर के बीच में भी कभी कभी जो दूरी महसूस होती
है, उस दूरी को भी मिटा देना और हिंदुस्तान में हर हिंदुस्तानी भारत में
इस मुकुटमणि के लिए गर्व करता बने, ऐसी सरकार चलाना ऐसे विकास के काम करना
यह सपने मुफ्ती साहब देखा करते थे।
इन दिनों जब भी मेरा महबूबा जी से मिलना
हुआ है। मैं देख रहा हूं कि जिस मनोयोग के साथ लगन के साथ वो
जम्मू-कश्मीर के विकास की चर्चा करती रहतीं थी। यहां भी बैठी मौसम की बात
नहीं कर रही हैं – tourism का क्या होगा, वो road का क्या होगा, वहां
bridge बनाना है उसका क्या होगा। जब यह भाव बनता है, विकास के प्रति जब यह
समर्पण का भाव बन जाता है, तो विकास होना सुनिश्चित हो जाता है और इसलिए
मैं महबूबा जी को बहुत बधाई देता हूं।
आज मुझे, मां वैष्णो देवी के चरणों में आ
करके, तीन अवसर प्राप्त हुए तीन कार्यक्रम करने का मौका मिला। आज प्रात:
सुबह university में convocation के लिए मुझे नौजवानों के साथ मिलने का
अवसर मिला। हिंदुस्तान में बहुत कम लोगों को पता होगा कि जम्मू-कश्मीर
करीब-करीब देश के सभी राज्यों के विद्यार्थियों को यहां अपने साथ रख करके
उनकी शिक्षा-दिक्षा का काम कर रहा है। यह अपने आप में जम्मू कश्मीर की
एक वो पहचान है, जो देश को ताकत देती है देश का गौरव बढ़ाती है।
आज मुझे एक sports comlex का भी उद्घाटन
करने को मिला। अगर खेल नहीं है, तो जीवन में खिलना भी बड़ा असंभव हो जाता
है। जो खेलता है, वही खिलता है। कभी कभी हम जीवन में एक शब्द बड़े गर्व के
साथ सुनते हैं और वो सिर्फ खेल के मैदान में नहीं सुनते जीवन के हर दौर पर
हम सुनते हैं। कोई भी व्यक्ति कुछ अच्छा करें कुछ अलग तरीके से करे तो
हम तुरंत कहते हैं नहीं-नहीं भाई उसमें तो बड़ा sportsman spirit है। दो
भाई के बीच में भी कोई बात हो जाए और एक भाई कोई उदारता से व्यवहार करे
तो नहीं-नहीं वो छोटा भाई है न वो तो बड़ा sportsman spirit है। यह
sportsman spirit शब्द खेल के मैदान में खिलाडि़यों ने जो साधना की है
उसका परिणाम है कि ताकतवर बनना। अगर sport है तो sportsman spirit है और
अगर sportsman spirit होता है तो अपने पन का भाव किसी के लिए कुछ छोड़ने
का इरादा किसी को साथ ले करके चलने का इरादा, कंधे से कंधा मिलाकर विजय
प्राप्त करने का हौसला, कदम से कदम मिला करके चलने के इरादे यह sportsman
spirit के साथ अपने आप उजागर होते हैं।
मां वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के
द्वारा यह जो sport complex बना है वो सिर्फ sport को ही बढ़ावा देगा ऐसा
नहीं, वो sportsman spirit को बढावा देगा जो जीवन के अंदर एक lubrication
का काम करता है। जीवन को एक ताकत देने का काम करता है।
जब कश्मीर का नौजवान हिंदुस्तान के
क्रिकेट के अंदर चमकता है, तो सीना गर्व से फूल जाता है। 2017 में FIFA
Under-17 World Cup फुटबाल का भारत में होने जा रहा है। ये FIFA Under-17
World Cup, भारत के नौजवानों में आने वाले दिनों में एक नया ताकत भरने
वाला, नया हौंसला बुलंद करने वाला अवसर बनना चाहिए। दुनिया भर के लोग,
खिलाड़ी आएंगे हमारे यहां, फुटबॉल में हम कोई अच्छी स्थिति में नहीं है, हम
बहुत पीछे हैं। लेकिन फिर भी हम एक ऐसा माहौल बनाएं कि हम खेल को जिस
प्रकार से गले लगाएं। दुनिया अनुभव करें, हिंदुस्तान की विविधता का,
हिंदुस्तान की युवा शक्ति का, हिंदुस्तान के समार्थ्य का ऐसा माहौल बनाने
में Sports Complex भी कोई न कोई भूमिका अदा करेगा, ऐसी मैं आशा करता हूं।
आज मुझे एक sports comlex का भी उद्घाटन
करने को मिला। अगर खेल नहीं है, तो जीवन में खिलना भी बड़ा असंभव हो जाता
है। जो खेलता है, वही खिलता है। कभी कभी हम जीवन में एक शब्द बड़े गर्व के
साथ सुनते हैं और वो सिर्फ खेल के मैदान में नहीं सुनते जीवन के हर दौर पर
हम सुनते हैं। कोई भी व्यक्ति कुछ अच्छा करें कुछ अलग तरीके से करे तो
हम तुरंत कहते हैं नहीं-नहीं भाई उसमें तो बड़ा sportsman spirit है। दो
भाई के बीच में भी कोई बात हो जाए और एक भाई कोई उदारता से व्यवहार करे
तो नहीं-नहीं वो छोटा भाई है न वो तो बड़ा sportsman spirit है। यह
sportsman spirit शब्द खेल के मैदान में खिलाडि़यों ने जो साधना की है
उसका परिणाम है कि ताकतवर बनना। अगर sport है तो sportsman spirit है और
अगर sportsman spirit होता है तो अपने पन का भाव किसी के लिए कुछ छोड़ने
का इरादा किसी को साथ ले करके चलने का इरादा, कंधे से कंधा मिलाकर विजय
प्राप्त करने का हौसला, कदम से कदम मिला करके चलने के इरादे यह sportsman
spirit के साथ अपने आप उजागर होते हैं।
मां वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के
द्वारा यह जो sport complex बना है वो सिर्फ sport को ही बढ़ावा देगा ऐसा
नहीं, वो sportsman spirit को बढावा देगा जो जीवन के अंदर एक lubrication
का काम करता है। जीवन को एक ताकत देने का काम करता है।
जब कश्मीर का नौजवान हिंदुस्तान के
क्रिकेट के अंदर चमकता है, तो सीना गर्व से फूल जाता है। 2017 में FIFA
Under-17 World Cup फुटबाल का भारत में होने जा रहा है। ये FIFA Under-17
World Cup, भारत के नौजवानों में आने वाले दिनों में एक नया ताकत भरने
वाला, नया हौंसला बुलंद करने वाला अवसर बनना चाहिए। दुनिया भर के लोग,
खिलाड़ी आएंगे हमारे यहां, फुटबॉल में हम कोई अच्छी स्थिति में नहीं है, हम
बहुत पीछे हैं। लेकिन फिर भी हम एक ऐसा माहौल बनाएं कि हम खेल को जिस
प्रकार से गले लगाएं। दुनिया अनुभव करें, हिंदुस्तान की विविधता का,
हिंदुस्तान की युवा शक्ति का, हिंदुस्तान के समार्थ्य का ऐसा माहौल बनाने
में Sports Complex भी कोई न कोई भूमिका अदा करेगा, ऐसी मैं आशा करता हूं।
मैं उन गांववालों को हृदय से अभिनंदन करना
चाहता हूं, उन्होंने कुछ दिया। जमीन देना बहुत सरल बात नहीं होती है,
लेकिन गांववालों ने जमीन दी, उन्होंने ने तो जमीन दी, लेकिन वो जमीन आज उस
रूप को धारण किया है जो लोगों को जीवन देने का काम करेगी और कितना जीवन में
संतोष होगा। एक जमाना था जिस जमीन के हम मालिक थे, मां वैष्णो देवी के
चरणों में वो जमीन हमने दे दी। आज ऐसा अस्पताल बना है, जो अस्पताल हजारों
लोगों की जिंदगी बचाने का कारण बन गया है और मैं मानता हूं इससे बड़ा जीवन
का संतोष क्या हो सकता है और इसलिए मैं सबसे पहले उन गांववालों को हृदय से
बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं।
मैं आज Mata Vaishno Devi Shrine Board को भी... जब जगमोहन जी यहां गवर्नर हुआ करते थे तब से लेकर के Mata Vaishno Devi Shrine Board
का विकास अनेक सामाजिक पृवत्तियां यहां पर आने वाली पाई-पाई का उपयोग
जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए कैसे किया जाए इसका एक उत्तम उदाहरण आज इस Shrine Board
ने प्रस्तुत किया है। वो Sports Complex चलाएं, वो University चलाएं, वो
अस्पताल चलाएं और हिंदुस्तान के गणमान्य अस्पतालों में जिसकी गणना होगी,
ऐसी अस्पताल सामान्य नहीं। हमारे देश में भी इस प्रकार की जो धन सम्पदा
पड़ी है, उसका जितना समाज के लिए उपयोग होगा, उतनी समाज के लिए ताकत बनेगी।
और यह Mata Vaishno Devi Shrine Board ने बता दिया है। एक रास्ता दिखाया है। और इसलिए वे भी इसके बहुत-बहुत अधिकारी हैं अभिनंदन के लिए।
मुझे विश्वास है कि इस अस्पताल के कारण
जम्मू कश्मीर के लोगों को अब गंभीर बीमारियों के लिए दूर तक नहीं जाना
पड़ेगा। व्यवस्थाएं तो अच्छी होगी, लेकिन डॉक्टर्स भी अच्छे होंगे। और
यहां का मौसम तो ऐसा है कहीं और ठीक होने में अगर 15 दिन लगता है, तो यहां
मौसम ऐसा है पांच दिन में ठीक हो जाएगा। और जिस जगह हिंदुस्तान में
दुनिया को पता चलेगा कि मां वैष्णो देवी के चरणों में एक ऐसा अस्पताल है,
वहां ऐसा मौसम है कि बीमारी आधे समय में ठीक हो जाती है तो दुनिया भी
tourist के नाते यही पर अस्पताल में medical care के लिए आ जाएगी। और यह
संभव है हमें जम्मू-कश्मीर के लोगों का सपना देखना चाहिए कि tourism के
लिए जैसे दुनिया हमारे यहां आती रही है वैसे health care tourism के लिए भी
दुनिया को यहां आने के लिए हम प्रेरित कर सकते हैं। ऐसी ऊंचाईयों पर हम
जम्मू कश्मीर को ले जा सकते हैं।
एक बात निश्चित है हिंदुस्तान तेज गति
से तरक्की करे सवा सौ करोड़ देशवासियों के सपने साकार हो उस दिशा में हम
सबको प्रयास करना है। चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी, चाहे कच्छ हो या
कामरूप एक संतुलित विकास चारों तरफ विकास, तेज गति से विकास हमारी सारी
समस्याओं को समाधान विकास में है। देश को आधुनिक infrastructure चाहिए।
स्कूल चाहिए, कॉलेज चाहिए, रोड चाहिए बिजली चाहिए, सामान्य मानव के विकास
के जीवन में सुधार आए यह व्यवस्था चाहिए। जब मुफ्ती साहब थे 80 हजार
करोड़ रुपये का पैकेज जम्मू कश्मीर की जिंदगी को बदलने के लिए लगाना है।
भारत सरकार पूरी ताकत के साथ जम्मू कश्मीर का भाग्य बदलने के लिए सरकार
के साथ कंधे से कंधा मिला करके हर कदम पर आगे बढ़ते हुए जम्मू-कश्मीर की
आशाओं-आकांक्षाओं को पूर्ण कर रहा है।
अटल बिहारी वाजपेयी जी, जिनके प्रति
जम्मू कश्मीर के लोगों की आपार श्रद्धा रही। शायद हिंदुस्तान में बहुत
कम ऐसे लीडर हुए हैं कि जिनके प्रति सामान्य मानव के मन में इतनी आस्था
हो जितनी अटल बिहारी वाजपेयी के लिए जम्मू कश्मीर में दिखाई देती है और
अटल जी कहा करते थे हमें जम्मू-कश्मीर को कैसे आगे बढ़ाना है। और वो
कहते थे इंसानियत, कश्मीयरत और जम्मूरियत, इन तीन मजबूती के पिलर पर हमें
जम्मू-कश्मीर को नई ऊंचाईयों पर ले जाना है। और हमने उन्हीं सपनों को
वाजपेयी जी के जो सपने है इंसानियत, कश्मीयरत और जम्मूरियत उसके अंदर
‘सबका साथ सबका विकास’ का रंग भर दिया है। हर किसी का भला हो, हर किसी को
साथ ले करके चले उन सपनों को पूरा करना है।
और मुझे विश्वास है tourism की दिशा में
भी जम्मू कश्मीर देश की बहुत बड़ी सेवा कर सकता है। और जम्मू-कश्मीर जब
tourist दुनिया का कोई आता है तो सिर्फ जम्मू-कश्मीर का आर्थिक भला होता
है ऐसा नहीं, पूरे हिंदुस्तान का आर्थिक भला होता है। जम्मू कश्मीर के
tourism को बल देने के लिए अनेक ऐसे क्षेत्र है कि जहां हम नये कदम रख
सकते हैं। और उसको आधुनिक tourism कैसे बनाए, adventure करना लोग चाहते हैं
उनके लिए tourism कैसे बनाए। जो लोग spiritual activity में अपना गुजारा
करना चाहते हैं उनके लिए tourism कैसे बनाए। अनेक ऐसे क्षेत्र है कि जहां
जम्मू-कश्मीर के tourism को हम बल दे सकते हैं। और जम्मू-कश्मीर सरकार
और भारत सरकार दोनों प्रतिबद्ध है कि जम्मू-कश्मीर में tourism के लिए
आवश्क आधुनिक infrastructure तैयार हो। Tourism के लिए आवश्यक सुविधाएं,
सामान्य मानव के लिए तैयार हो। रेल का काम बड़ी तेज गति से चल रहा है।
उसका बहुत सुखद परिणाम आने वाले दिनों में मिलने वाला है। Road, जम्मू से
श्रीनगर जाने का समय आधा कर देने के इरादेसे नये road बनाने की दिशा में
काम चल रहा है। जितना infrastructure तेजी से बढ़ेगा लेह-लदाख तक हम जुड़
जाएंगे। तो मैं मानता हूं कि आने वाले यात्रियों को इस तरफ आने का मंच
स्वाभाविक कर जाएगा। और इसलिए विकास की नई ऊंचाईयों को पार कर जाने के
इरादे से infrastructure पर बल देते हुए दोनों सरकारे कंधे से कंधा मिला
करके काम कर रही है।
मेरी महबूबा जी को अनेक-अनेक शुभकामनाएं हैं। मैं गवर्नर साहब का भी अभिनंदन करता हूं कि Shrine Board
के द्वारा इतने initiative लिए है जो सामान्य जम्मू-कश्मीर के नागरिक
भला करने में काम आएंगे। आप सबको भी मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यवाद।
उपस्थित महानुभाव और आज के केन्द्र बिन्दु, सभी युवा साथियों,
आपके जीवन का यह बड़ा महत्वपूर्ण अवसर
है। एक प्रकार से KG से प्रारंभ करे तो 20 साल-22 साल-25 साल, एक लगातार
तपस्या का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है और मैं नहीं मानता हूं की आप भी यह
मानते होंगे कि यह मंजिल पूरी हो गई है। अब तक आपको किसी ने यहां
पहुंचाया है। अब आपको अपने आपको कहीं पहुंचाना है। अब तक कोई ऊंगली पकड़कर
के यहां लाया है, अब आप अपने मकसद को लेकर के खुद को कसौटी पर कसते हुए,
मंजिल को पाने के लिए, अनेक चुनौतियों को झेलते हुए आगे बढ़ना है।
लेकिन वो तब संभव होता है कि आप यहां से क्या लेकर जाते हैं। आपके पास
वो कौन-सा खजाना है जो आपकी जिन्दगी बनाने के लिए काम आने वाला है।
जिसने यह खजाना भरपूर भर लिया है, उसको जीवन भर, हर पल, हर मोड़ पर, कहीं
न कहीं यह काम आने वाला है। लेकिन जिसने यहां तक आने के लिए सोचा था।
ज्यादातर अगर युवकों को पूछते हैं कि
क्या सोचा है आगे? तो कहता है, पहले एक बार पढ़ाई कर लूं। जो इतनी ही सोच
रखता है, उसके लिए कल के बाद एक बहुत बड़ा question mark जिन्दगी में
शुरू हो जाता है कि यह तो हो गया, अब क्या? लेकिन जिसे पता है कि इसके
बाद क्या। उसे किसी के सहारे की जरूरत नहीं लगती है। मॉ-बाप जब संतान को
जन्म देते हैं तो उनकी खुशी का पार नहीं होता है। लेकिन जब संतान जीवन
में सिद्धि प्राप्त करता है तो मॉ-बाप अनंत आनंद में समाहित हो जाते
हैं। संतान को जन्म देने से जो खुशी है, उससे संतान की सिद्धि हजारों
गुना ज्यादा खुशी उन मॉ-बाप को देती है।
आप कल्पना कर सकते हैं कि आपके जन्म से
ज्यादा आपके जीवन की खुशी आपके मॉ-बाप को देती है, तब आपकी जिम्मेवारी
कितनी बढ़ जाती हैं। आपके मॉ-बाप ने किन-किन सपनों को लेकर के आपके जीवन
को बनाने के लिए क्या कुछ नहीं झेला होगा? कभी आपको कुछ खरीदना होगा,
मनीऑर्डर की जरूरत होगी, बैंक में money transfer करने की इच्छा हो, अगर
दो दिन late भी हो गए होंगे तो आप परेशान हो गए होंगे कि पता नहीं
मम्मी-पापा क्या कर रहे हैं? और मॉ-बाप ने भी सोचा होगा, अरे! बच्चे को
दो दिन पहले जो पहुंचना था.. देर हो गई। अगली बार कुछ सोचेंगे, कुछ खर्च
में कमी करेंगे, पैसे बचाकर रखेंगे ताकि बच्चे को पहुंच जाए। जीवन के हर
पल को अगर हम देखते जाएंगे तो पता चलेगा कि क्या कुछ योगदान होगा, तब हम
जिन्दगी में कुछ पा सकते हैं, कुछ बन सकते हैं। लेकिन ज्यादातर हम इन
चीजों को भूल जाते हैं। जो भूलना चाहिए वो नहीं भूल पाते हैं, जो नहीं
भूलना चाहिए उसे याद रखना मुश्किल हो जाता है।
आप में से बहुत होंगे जिन्होंने बचपन में अपने मॉ-बाप से सुना होगा कि
इसको तो इंजीनियर बनाना है, इसको तो डॉक्टर बनाना है, इसको तो क्रिकेटर
बनाना है। कुछ न कुछ मॉ-बाप ने सपने देखे होंगे और धीरे-धीरे वो आपके अंदर
inject हो गए होंगे। दसवीं कक्षा में बड़ी मुश्किल से निकले होंगे
लेकिन वो सपने सोने नहीं देते होंगे क्योंकि मॉ-बाप ने कहा था, inject
किया हुआ था और कुछ नहीं हुआ तो घूमते-फिरते यहां पहुंच गए और जब यहां
पहुंच गए तो इस बात का आनंद नहीं है कि इतनी बढ़िया university में आए
हैं, बढ़िया शिक्षा का माहौल मिला है। लेकिन परेशानी एक बात की रहती है
कि जाना तो वहां था, पहुंचा यहां। जिसके दिल-दिमाग में, जाना तो वहां
था लेकिन पहुंच नहीं पाया, इसका बोझ रहता है, वो जिन्दगी कभी जी नहीं
सकता है और इसलिए मेरा आपसे आग्रह है, मेरा आपसे अुनरोध है। ठीक है, बचपन
में, नासमझी में बहुत कुछ सोचा होगा, नहीं बन पाए, उसको भूल जाइए। जो बन गए
है, उस विरासत को लेकर के जीने का हौसला बुलंद कीजिए, अपने आप जिन्दगी
बन जाएगी।
कुंठा, असफलता, सपनों में आईं रूकावटें,
ये बोझ नहीं बननी चाहिए, वो शिक्षा का कारण बनना चाहिए। उससे कुछ सीखना
होता है और अगर उसको सीख लेते हैं तो जिन्दगी में और बड़ी चुनौतियों को
स्वीकार करने का सामर्थ्य आ जाता है। पहले के जमाने में कहा जाता था कि
भई इस tunnel में चल पडा मैं, तो आखिरी मंजिल उस छोर पर जहां से tunnel
पूरी होगी, वहीं निकलेगी। अब वक्त बदल चुका है। इसके बाद भी जरूरी नहीं
है कि जिस रास्ते पर आप चल पड़े हैं वहीं पर आखिरी छोर होगा, वहीं
गुजारा करना पड़ेगा। अगर आप में हौसला है तो jump लगाकर के कहीं और भी चले
जा सकते हैं, कोई और नए क्षितिज को पार कर सकते हैं। ये बुलन्दी होनी
चाहिए, ये सपने होने चाहिए।
बहुत सारे विद्यार्थी इस देश में,
university में पढ़ते होंगे। क्या आप भी उन करोड़ों विद्यार्थियों में
से एक है, क्या आप भी उन सैंकड़ों university में से एक university के
student है? मैं समझता हूं सोचने का तरीका बदलिए। आप उन सैंकड़ों
university में से एक university के student नहीं है। आप उन करोड़ों
विद्यार्थियों की तरह एक विद्यार्थी नहीं है, आप कुछ और है। और मैं जब
और है कहता हूं तो उसका तात्पर्य मेरा यह है कि हिन्दुस्तान में कई
university चलती होंगी जो taxpayer के पैसों से, सरकारी पैसों से, आपके
मॉ-बाप की फीस से चलती होगी। यही एक university अपवाद है, जिसमें बाकी सब
होने के उपरांत माता वैष्णो देवी के चरणों में हैं। जिन गरीब लोगों ने
पैसे चढ़ाए हैं, उसके पास पैसे नहीं थे घोड़े से पहुंचने के लिए, उसकी
उम्र 60-65-70 हुई होगी, वो अपने गांव से बड़ी मुश्किल से without
reservation चला होगा, केरल से-कन्याकुमारी से, वो वैष्णो देवी तक आया
होगा। मॉं को चढ़ावा चढ़ाना है इसलिए रास्ते में एक वक्त का खाना छोड़
दिया होगा कि मॉं को चढ़ावा चढ़ाना है। ऐसे गरीब लोगों ने और
हिन्दुस्तान के हर कोने के गरीब लोगों ने, किसी एक कोने के नहीं हर
कोने के गरीब लोगों ने इस माता वैष्णो देवी के चरणों में कुछ न कुछ दिया
होगा। दिया होगा तब तो उसको लगा होगा कि शायद कुछ पुण्य कमा लूं लेकिन
जो दिया है उसका परिणाम है कि इतना बड़ा पुण्य कमाने का सौभाग्य
प्राप्त हुआ है। इसलिए आपकी शिक्षा-दीक्षा में इस दीवारों में, इस इमारत
में, यहां के माहौल में उन गरीबों के सपनों का वास है। और इसलिए औरों से
हम कुछ अलग है और universities से हम कुछ अलग है और शायद ही दुनिया में
करोड़ों-करोड़ों गरीबों के दो रुपए-पाँच रुपए से कोई university चलती हो,
यह अपने आप में एक अजूबा है और इसलिए इसके प्रति हमारा भाव उन
कोटि-कोटि गरीबों के प्रति अपनेपन के भाव में परिवर्तित होना चाहिए।
मुझे कोई गरीब दिखाई दे, मैं जीवन की किसी भी ऊँचाई पर पहुंचा क्यों न
हो, मुझे उस पल दिखना चाहिए कि इस गरीब के लिए कुछ करूंगा क्योंकि
कोई गरीब था जिसने एक बार खाना छोड़कर के मॉं के चरणों में एक रुपया दिया
था, जो मेरी पढ़ाई में काम आया था। और इसलिए यहां से हम जा रहे हैं तब
आपको इस बात की भी खुशी होगी कि बस ! बहुत हो गया, चलो यार कुछ पल ऐसे ही
गुजारते हैं। ऐसा बहुत कुछ होता है। लेकिन जिन्दगी की कसौटी तब शुरू
होती है जब अपने आप के बलबूते पर दिशा तय करनी होती है, फैसले लेने होते
हैं।
अभी तो इस campus में कुछ भी करते होंगे,
कोई तो होगा जो आपको ऊंगली पकड़कर के चलाता होगा। आपका जो senior होता होगा
वो भी कहता है नहीं, नहीं ऐसा मत करो यार, तुम इस पर ख्याल रखो। अच्छा
हो जाएगा। अरे campus के बाहर कोई चाय बेचने वाला होगा, वो भी कहता है भाई
अब रात देर हो गई, बहुत ज्यादा मत पढ़ो, जरा सो जाओ, सुबह तुम्हारा exam
है। किसी peon ने भी आपको कहा होगा कि नहीं-नहीं भाई ऐसा नहीं करते, अपनी
university है, ऐसा क्यों करते हो? कितने-कितने लोगों ने आपको चलाया
होगा।
और उसमें पहली बार दीक्षांत समारोह की
कल्पना को साकार किया गया है। भारत में ये परंपरा हजारों वर्ष से संस्थागत
बनी हुई है और एक प्रकार से दीक्षांत समारोह ये शिक्षा समारोह नहीं होता है
और इसलिए मुझे आपको शिक्षा देने का हक नहीं बनता है। ये दीक्षांत समारोह
है जो शिक्षा हमने पाई है, जो अर्जित किया है उसको समाज, जीवन को दीक्षा के
लिए समर्पित करने के लिए लिए हमें कदम उठाने हैं, समाज के चरणों में रखने
के लिए कदम उठाने हैं। ये देश विकास की नई ऊंचाइयों को छू रहा है। 800
Million Youth का देश जो 35 से कम Age Group का है, वो दुनिया में क्या-कुछ
नहीं कर सकता है। हर नौजवान का सपना हिंदुस्तान की तरक्की का कारण बन सकता
है। हम वो लोग हैं जिन्होंने उपनिषद् से लेकर के उपग्रह तक की यात्रा की
है। उपनिषद् से उपग्रह तक की यात्रा करने वाले हम लोग हैं। हम वो लोग हैं
जिन्होंने गुरुकुल से विश्वकुल तक अपने आप का विस्तार किया है, हम वो लोग
हैं और भारत का नौजवान, जब Mars मिशन पर दुनिया कितने ही सालों से प्रयास
कर रही थी।
हर किसी को कई बार Failure मिला, कई बार Failure मिला लेकिन ये हिंदुस्तान
का नौजवान था, हिंदुस्तान की Talent थी कि पहले ही प्रयास में वो दुनिया
में पहला देश बना, पहले ही प्रयास में Mars मिशन में सफल हुआ और हम लोग, हम
गरीब देश के लोग हैं तो हम हमारी, सपने कितने ऊंचे नहीं होते, गरीबी में
से रास्ता निकालना भी हम लोगों को आता है। Mars मिशन का खर्चा कितना हुआ,
यहां से कटरा जाना है तो ऑटो रिक्शा में शायद 1 किलोमीटर का 10 रुपया लगता
होगा लेकिन ये देश के वैज्ञानिकों की ताकत है, इस देश के Talent की ताकत
देखिए कि Mars मिशन की यात्रा का खर्च 1 किलोमीटर का 7 रुपए से भी कम आया।
इतना ही नहीं हॉलीवुड की जो फिल्में बनती हैं उससे कम खर्चे में मेरे
हिंदुस्तान का नौजवान Mars मिशन पर सफलतापूर्वक अपने कदम रखा सकता है। जिस
देश के पास ये Talent हो, सामर्थ्य हो उस देश को सपने देखने का हक भी होता
है, उस देश को विश्व को कुछ देने का मकसद भी होता है और उसी की पूर्ति के
लिए अपने आप को सामर्थ्य बनाने का कर्तव्य भी होता है, उस कर्तव्य के पालन
के लिए, हम आज जीवन को देश के लिए क्या करेंगे। उसे पाने का अगर प्रयास
करते हैं तो आप देखिए जीवन का संतोष कई गुना बढ़ जाएगा। आप यहां से कई सपने
लेकर के जा रहे हैं और खुद को कुछ बनाने के सपने गलते हैं, ऐसा मैं नहीं
मानता हूं लेकिन कभी-कभार बनने के सपने निराशा के कारण भी बन जाते हैं। जो
बनना चाहो और नहीं बन पाए तो जैसा मैंने प्रारंभ में कहा, वो बोझ बन जाता
है लेकिन अगर कुछ करने का सपना होता है तो हर पल करने के बाद एक समाधान
होता है, एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है, एक नई गति मिलती है, एक नया लक्ष्य
मिलता है, नया सिद्धांत, आदर्श मिल जाता है और जीवन को कसौटी पर कसने का एक
इरादा बन जाता है और वही तो जिंदगी को आगे बढ़ाता है और इसलिए आज जब माता
वैष्णो देवी के चरणों से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त करके आप जा रहे हैं और माँ
भी खुश होती होगी कि लड़कियों ने कमाल कर दिया है, हो सकता है कुछ दिनों के
बाद आंदोलन चले पुरुषों के आरक्षण का, वो भी कोई मांग लेकर के निकल पड़े
कि इतने Gold Medal तो हमारे लिए रिजर्व होने चाहिए।
कल ही भारत की एक बेटी दीपिका ने
हिंदुस्तान का नाम रोशन कर दिया। रियो के लिए उसका Selection हुआ और पहली
बार एक बेटी जिमनास्टिक के लिए जा रही है। यही चीजें हैं जो देश में ताकत
देती हैं। घटना एक इस कोने में और कहां त्रिपुरा, छोटा सा प्रदेश, कहां
संसाधन होंगे, क्या संसाधन होने से वो रियो पहुंच रही है.... नहीं, संकल्प
के कारण पहुंच रही है। भारत का झंडा ऊंचा करने का इरादा है इसलिए पहुंच रही
है और इसलिए व्यवस्थाएं, सुविधाएं यही सब कुछ होती है जिंदगी में, ऐसा
नहीं है। जीवन में जो लोग सफल हुए हैं, उनका इतिहास कहता है जिस अब्दुल
कलाम जी ने एस University का प्रारंभ किया था, कभी अखबार बेचते थे और
मिसाइल मैन के नाम से जाने गए। जरूरी नहीं है जिंदगी बनाने के लिए सुख,
सुविधा, अवसर, व्यवस्था हों तभी होता है। हौंसला बुलंद होना चाहिए अपने आप
चीजें बन जाने लग जाती हैं और रास्ते भी निकल आते हैं। वो दशरथ मांझी की
घटना कौन नहीं जानता है। बिहार का एक गरीब किसान, वो पढ़ा-लिखा नहीं था
लेकिन उसका मन कर गया एक रास्ता बनाने का और उसने रास्ता बना दिया और उसने
इतिहास बना दिया। वो सिर्फ रास्ता नहीं था मानवीय पुरुषार्थ का एक इतिहास
उसने लिख दिया है और इसलिए जीवन में उसी चीजों का जो हिसाब लगाता रहता था,
यार ऐसा होता तो अच्छा होता, ऐसा होता तो अच्छा होता तो शायद जिनके पास सब
सुविधाएं हैं, उनको कुछ भी बनने में दिक्कत नहीं आती लेकिन देखा होगा आपने,
जिनके पास सब कुछ है उनको विरासत में मिल गया, मिल गया बाकी ऐसे बहुत लोग
होते हैं जिनके पास कुछ नहीं होता है वो अपना नई दुनिया खड़े कर देते हैं
इसलिए अगर सबसे बड़ी संपत्ति है और 21वीं सदी जिसकी मोहताज है और वो है
ज्ञानशक्ति और पूरे विश्व को 21वीं सदी में वो ही नेतृत्व करने वाला है
जिसके पास ज्ञानशक्ति है और 21वीं सदी वो ज्ञान का युग है और भारत का
इतिहास कहता है जब-जब मानव जात ज्ञान युग में प्रवेश किया है, भारत ने
विश्व का नेतृत्व किया है। 21वीं सदी ज्ञान युग की सदी है।
भारत के पास विश्व का नेतृत्व करने के लिए
ज्ञान का संकुल है और आप लोग हैं, जो उस ज्ञान के वाहक हैं, आप वो हैं जो
ज्ञान को ऊर्जा के रूप में लेकर के राष्ट्र के लिए कुछ करने का सामर्थ्य
रखते हैं और इसलिए इस दीक्षांत समारोह से अपने जीवन के लिए सोचते-सोचते,
जिनके कारण में ये जीवन में कुछ पाया है, उनके लिए भी मैं कुछ सोचूंगा, कुछ
करूंगा और जीवन का एक संतोष उसी से मिलेगा और जीवन में संतोष से बड़ी ताकत
नहीं होती है। संतोष अपने आप में एक अंतर ऊर्जा है, उस अंतर ऊर्जा को हमें
अपने आप में हमेशा संजोए रखना होता है। मुझे महबूबा जी की एक बात बहुत
अच्छी लगी कि यहां के लोगों के लिए, हम वो लोग हैं जिनकी बातें हम दुनिया
भर में पहुंचाने वाले हैं कि कितने प्यारे लोग हैं, कितनी महान परंपरा के
लोग हैं, कितने उदार तरीके के लोग हैं, कैसे प्रकृति के साथ उन्होंने जीना
सीखा दिया और एक एबंसेडर के रूप में मैं जम्मू-कश्मीर की इस महान धरती की
बात, भारत के मुकुट मणि की बात मैं जहां जाऊं, कैसे पहुंचाऊं, इस
University के माध्यम से मैं कर सकता हूं, उसके एक विद्यार्थी के नाम कर
सकता हूं और यही ताकत लेकर के हम जाएं, हिंदुस्तान के अनेक राज्य यहां हैं।
एक प्रकार ये University, इस सभागृह में मिनी हिंदुस्तान नजर आ रहा है।
भारत के कई कोने होंगे जिसको पता नहीं होगा कि जम्मू-कश्मीर की धरती पर भी
एक मिनी हिंदस्तान अपने सपनों को संजो रहा है तब हर भारतीय के दिलों में
कितना आनंद होगा कि जम्मू-कश्मीर की धरती पर भारत के भविष्य के लिए सपने
संजोने वाले नौजवान मेरे सामने बैठे हैं, उनके लिए कितना आनंद होगा।
इस आनंद धारा को लेकर के हम चलें और सबका साथ, सबका विकास। साथ सबका चाहिए,
विकास सबका होना चाहिए। ये संकल्प ही राष्ट्र को नई ऊंचाइयों पर ले जाता
है और हम राष्ट्र को एक ऊंचाई पर ले जाने वाले एक व्यक्ति के रूप में, एक
ऊर्जा के रूप में हम अपने जीवन में कुछ काम आएं, उस सपनों को लेकर के चलें।
मेरी इन सभी नौजवानों को हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं, विशेषकर के
जिन बेटियों ने आज पराक्रम दिखाया है उनको मैं लाख-लाख बधाईयां देता हूं,
उनके मां-बाप को बधाई देता हूं। उन्होंने अपने बेटियों को पढ़ने के लिए
यहां तक भेजा है। बेटी जब पढ़ती है तो बेटी का तो योगदान है ही है लेकिन उस
माँ का ज्यादा योगदान है, जो बेटी को पढ़ने के लिए खुद कष्ट उठाती है।
वरना मां को तो करता होगा अच्छा होगा कि वो घर में है ताकि छोटे भाई के साथ
थोड़ा उसको संभाल ले, अच्छा है घर में रहे ताकि मेहमान आए तो बर्तन साफ के
काम आ जाए लेकिन वो मां होती है, जिसको अपने सुख के लिए नहीं बच्चों के
सुख के लिए जीने का मन करता है तब मां बेटी को पढ़ने के लिए बाहर भेजती है।
मैं उन माता को भी प्रणाम करता हूं, जिन माता ने इन बेटियों को पढाने के
लिए आगे आई है, उन सबको मैं प्रणाम करते हुए आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं
देता हूं। धन्यवाद।